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________________ ३४ शिरोधार्य करनेमे समक्ष नही आता । धर्म आत्मा और उसके विश्वासकी वस्तु है। उसके यथार्थ स्वरूप तथा उपलब्धिपूर आत्माका यथार्थ कल्याण अवलम्बित है । अतः आशा है, सहृदय विचारक उदार दृष्टिसे जैनशासन का परिशीलन करेंगे । सुमेरुचन्द्र दिवाकर अनुकरणीय जैन - शासनकी १५०० प्रतियाँ त्यागियों, विद्वानो और सस्थाओं को भेट स्वरूप देने के लिए आसाम प्रात के धर्मोपकारी जिनवाणीभक्त श्री अमरचन्द्र झूमरमलजी पहाडे तथा श्री चन्दूलालजी बगडा पलासवाडी ने मुद्रित कराई है । उनका धर्म- प्रेम अनुकरणीय है । आशा है श्रुतभक्त बन्धु शास्त्रोद्धार और सत्साहित्य प्रचार में हमें अधिकाधिक सहयोग देगे । हमारे ग्रथ मुद्रित कराते समय जो महानुभाव उस ग्रंथ की प्रतियॉ भेट करने के लिये चाहेंगे । उनको प्रतियाँ केवल प्रेस लागत पर छपवा दी जाएँगी 1 - प्रकाशक
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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