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________________ इतिहासके प्रकाशम ३२१ शोधसे यह प्रकट हुआ है कि यथार्थमें ब्राह्मण धर्मके सद्भाव अथवा उसके हिन्दूधर्म रूपमें परिवर्तित होनेके बहुत पूर्व जैनधर्म इस देशमें विद्यमान था। यह सत्य है कि देशमें बहुसख्यक हिन्दुओ के सपर्कवश जैनियोमें ब्राह्मण धर्मसे सम्बन्धित अनेक रीति रिवाज प्रचलित हो गए है।" ____ यदि अधिक गभीरताके साथ अन्वेषण एव गोधका कार्य किया जाय, तो जैनधर्मके विषयमे ऐसी महत्त्वपूर्ण वाते प्रकाशमे आवेगी, जिससे जगत् चकित हो उठेगा। जो धर्म बृहत्तर भारतका धर्म रह चुका है, जो चद्रगुप्त सदृश प्रतापी नरेगोके समयमें राष्ट्रधर्म रहा है, उसकी वहुमूल्य सामग्री अव भी भूगर्भमे लुप्त है। भारतके बाहर भी जैनधर्मका प्रसार पुरातनकालमे रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आस्ट्रियाके वूडापेस्ट नगरके समीपवर्ती खेतमे एक किसानको भगवान् महावीरकी मूर्ति प्राप्त हुई थी। ____ एक पुरातत्त्ववेत्ताका कथन है -अगर हम दस मील लम्बी त्रिज्या (Radus ) लेकर भारतके किसी भी स्थानको केन्द्र बना वृत्त वनावे तो उसके भीतर निश्चयसे जैन भग्नावशेषोके दर्शन होगे।" इससे जैनधर्मके प्रसार और पुरातनकालीन प्रभावका वोध होता है। ___ जैनधर्मकी प्राचीनतापर यदि दार्शनिक शैलीसे विचार किया जाय, तो कहना होगा, कि यह अनादि है। जव पदार्थ अनादि-निधन है, तब १ Vide Samprati p. 385. a "An eminent archaeologist says that if we draw a circle with a radius of ten miles, having any spot in India as the centre, we are sure to find some Jain remains within that circle" Vide Kannad Monthly Vivekabhyudaya p. 96, 1940. २१
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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