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________________ आत्मजागृति के साधन - तीर्थस्थल दही दूध घृत चावल चने । तेल तबोल पहुप श्रनगिने ॥ इतनी वस्तु तजी ततकाल । खन लीनौ कीनौ हठ-बाल ॥२२६॥ चैत महीने खन लियौ, बोते मास छ सात । आई पून्यौ कार्तिकी, चले लोग सब जात ॥ २३० ॥" "श्री सम्मेदसिखिरको यात्राका समाचार" नामक हस्त लिखित ११ पृष्ठ वाली पुस्तिकासे विदित होता है कि, सवत् १८६७ मे कार्तिक वदी ५ बुधवारको कोई साहु धनसिहजीके नेतृत्वमें मैनपुरीसे २५० बैलगाडिया और करीब एक हजार यात्री गिखरजीकी वन्दनाको निकले थे। जिस दिन सघ निकला था उस दिन मैनपुरीमे रथयात्रा हुई थी । समे धर्म-साधन निमित्त आदिनाथ भगवान्‌की मनोज प्रतिमा विराजमान की गई थी। रथयात्रामें बल्लमधारी सिपाही आदि भी थे । बनारस में भेलूपुराके मन्दिरके निकट सघ ठहरा था। पावापुरी पहुँचकर सघने जलमन्दिरके समीप आश्रय लिया था। राजगृही, गुणावा आदिकी वन्दना करते हुए वसतपचमीको सघने सम्मेदशिखरकी वन्दना की और पर्वतसे लौटकर मधुवनमें धर्मोत्सव मनाया, रथयात्रा निकाली जिसमें पालगञ्जके राजा भी सम्मिलित हुए थे । माघ सुदी १५ को सघने मधुवनसे प्रस्थान किया । "" २५३ उपर्युक्त दोनो यात्रा - सघ विवरणोसे उस भूमका निवारण हो जाता है जो प्रीवी कौन्सिलकी अपील न० १२१ मे लेफ्टिनेंट वीडल साहबने सन् १८४६ (स० १९०३ ) में शिखरजीके पर्वतको जगली जानवरो, घनी झाडियो आदिसे व्याप्त बताया था और लिखा था कि वहा मनुष्य नही रहते थे | वीडल महागयका भाव यह रहा होगा कि पर्वतपर लोग नही रहा करते थे । तीर्थ यात्रियोका आवागमन उनके बहुत पहिले से पूर्वोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है। 1 1 १ जैन सिद्धान्तभास्कर भाग ४ किरण ३, पृ० १४८ ।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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