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________________ आत्मजागृति के साधन-तीर्थस्थल सम्पूर्ण विश्वमे जो वातावरण है, वह प्राय राग, द्वेष, मोहपूर्ण भावोको प्रेरणा दिया करता है । यद्यपि समर्थ साधक विरोधी वातावरण मे विशेष आत्म-बलके कारण, आत्मसाधनाके क्षेत्रमे अबाधित गतिसे बढता चला जाता है। किन्तु मध्यम वृत्तिवाला मुमुक्षु योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावरूप अनुकूल वातावरणके बिना अपने चित्तकी निर्मलता स्थिर रखने में बडी कठिनताका अनुभव करता है। इसी दृष्टिसे पडित प्राशाधरजीने धार्मिक गृहस्थको अपनी साधनाके अनुकूल गृह तथा जीवन-सहचरीका सम्बन्ध मिलानेका मार्ग सुझाया है । वातावरणका मनोवृत्ति पर कम असर नहीं पडता। स्थलविशेष स्मृतिपटलके समक्ष सदियो पहलेकी घटनाओको उपस्थित कर देता है, जिससे जीवनमे कभी-कभी ऐसी प्रेरणा मिलती है, जो बडे-बडे ग्रन्थो, सन्तो, प्रवचनोसे भी नहीं मिलती। यदि कोई सहृदय चित्तौरगढ पहुचे, तो राणा प्रताप 'का अप्रतिम स्वातन्त्र्य-प्रेम, उत्कृष्ट देश-भक्ति तथा त्यागका सजीव चित्र हृदय-पटल पर अकित हुए बिना न रहेगा। जौहरव्रतके कारण पद्मिनी आदि हजारो वीरागनाओने अपने शीलको अक्षुण्ण रखते हुए सती वननेका जो अभूतपूर्व त्याग किया है, वह कथा भी स्मरण-पथमें आकर पुरातन भारतको पवित्र भावनाको जगाये बिना न रहेगी। आजके राजनैतिक वातावरणसे प्रभावित व्यक्ति कदाचित् जालियावाला बागको देखने जाए, तो जनरल डायरके क्रूर-कृत्य और पराधीन भारतीयोकी बेबसीकी स्मृति जागे बिना न रहेगी। ___ इसी प्रकार आध्यात्मिक जागरणके क्षेत्रमे साधक उन स्थलोका दर्शन करे और शान्तचित्त हो अपना कुछ समय बितावे, जहा तीर्थंकर आदि महापुरुषोने विश्वके वैभवका परित्याग कर साम्यभावकी प्राप्तिनिमित्त क्रोधादि रिपुओका संहार किया , तो उसको आत्मामें विशेष बल उत्पन्न
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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