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________________ अहिंसाके आलोकमे जैनोका आहार-पान और महावीरकी जीवन-चर्याका अध्ययन करना चाहिए था। कदाचित् 'कुक्कुडमस, बहु अद्विय' का सम्बन्ध प्रक्षिप्त न होकर यदि वास्तवमे महावीरके साथ होता तथा उसका मास-परक अर्थ रहता, तो वौद्ध जगत्के समान जैन जगत् भी आमिष आहार द्वारा अहिसा तत्त्वज्ञानकी सुन्दर समाधि बनाए बिना न रहता। वाह्य जाली प्रमाणोकी निस्सारताका पता अन्तरग साक्षियोके द्वारा न्यायविद्याके पण्डित आजकी चुस्त, चालाक अदालतोमे लगाया करते है। उसी अन्तरग साक्षीके प्रकाशमे यह ज्ञात होता है कि वौद्धजगत्के समान हिसन-प्रवृत्ति के पोषणनिमित्त परम कारुणिक महावीरके पुण्य जीवनमे बुद्ध-जीवनकी तरह आमिष आहारकी कल्पना की गई। किन्तु, जैन आचारशास्त्र, जैन श्रमणोकी ही नही, गृहस्थोकी चर्याका मासके सिवा अन्य भी असात्त्विक शाकाहार तकसे असम्बन्ध रूप अन्तरग साक्षिया महावीर की अहिंसाको सूर्य प्रकाशके समान जगत्के समक्ष प्रकट करती है और मुमुक्षुको सम्यक् मार्ग सुझाती है कि विश्वका हित पवित्र जीवनमे है। __श्रीयुत् गंगाधर रामचन्द्र साने बी० ए० ने 'भारतवर्षाचा मार्मिक इतिहास' लिखनेमे निष्पक्ष दृष्टिको भुला धर्मका विकृत चित्रण कर अपनी साम्प्रदायिक दृष्टिको परितृप्त करनेका प्रयत्न किया है। पानी छानकर पीनेसे क्या लाभ है, आज यन्त्रविद्याके विकास होनेके कारण प्रत्येक विचारकके ध्यानमे आ जाते है । पानी छानकर पीनेसे अनेक जलस्थ जन्तु पेटमें पहुँचनेसे बच जाते है। जन्तुओके रक्षणके साथ पीने वालेका भी रक्षण होता है । क्योकि कई विचित्र रोग जैसे नहरुआ आदि अनछने पानीके ही दुष्परिणाम है। अत्यन्त सूक्ष्म जीवोका छन्नेके द्वारा भी रक्षण सम्भव नही है, फिर भी माइक्रास कोप-अणुवीक्षण यन्त्र द्वारा इस बातका पता चलता है कि कितने जीवोका एक साधारण सी प्रक्रियासे रक्षण हो जाता है। मनुस्मृति सदृश हिंसात्मक वलिके समर्थक शास्त्रमे भी निम्नलिखित श्लोक छ।जल ग्रहणका समर्थक पाया जाता है -
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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