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________________ प्रवुद्ध-साधक १२५ समर्थक सामग्री उपलब्ध होती है। शकराचार्यके विवेक चूडामणिमे ब्रह्मनिष्ठ योगीकी स्वाधीन वृत्तिपर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि उनके वस्त्र दिशा रूपी होते है, जिन्हे धोने और सुखाने की आवश्यकता नही मालूम पडती । इस प्रकार प्राचीन भारतीय वाड्मयका सम्यक् अवगाहन करनेपर प्रचुर प्रमाणमे श्रेष्ठ साधकोके दिगम्बरत्वकी महिमाको बतानेवाली महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है। तत्त्वदर्शी तो यही सोचता है कि में कब आशा रूपी वस्त्रोको धारण करूँगा।" ९ उस श्रेष्ठ अवस्थामे ही यह जीव पूर्णं निराकुल हो ब्रह्मसाक्षात्कारका आनद लेनेमे समर्थ होता है । आत्म-निमग्नताकी स्थिति में तनबदनकी कैसे सुध रहेगी। अपने युगके विख्यात सन्यासी स्वामी रामकृष्ण परमहसके सबधमे प्रकाशित "श्री श्रीरामकृष्ण कथामृत" बँगला भाषाकी रचनामे स्वामीजीकी दैनिक - चर्याकी चर्चा की गई है, कि "जगने पर भक्तो ने देखा प्रभात हो गया है। श्री रामकृष्ण बालकके समान दिगम्बर है और कमरे के भीतर ईश्वरका नाम लेते हुए घूम रहे है ।" (डायरी १६ अक्तूबर १८८२ ) । श्री अश्विनीकुमार दत्तने जो वगालके विख्यात राजनैतिक नेता थे 'रामकृष्णके सस्मरण' में उनके दिगम्वरत्वकी चर्चा की है । स्वय स्वामीजीने उनसे कहा था कि "मैं सभी भौतिक जगत् की वस्तुओको भूल जाता हूँ । उस समय वस्त्र भी छूट जाता है ।" १ " चिन्ताशून्यमदन्यभैक्षमशनं पान सरिद्वारिषु स्वातन्त्र्येण निरकुशा स्थितिरभीनिद्रा श्मशाने बने । वस्त्र क्षालन - शोषणादिरहितं दिग्वारतु शय्या मही सचारो निगमान्तवीथिषु विदा क्रीडा परे ब्रह्मणि ॥" २ "आशावासो वसीमहि " "Ramkrishna said I lost attention to every thing (mundare ) My cloth diopped "Reminiscences of Ramkrishna," Vol. I, p, 310. 25
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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