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________________ सयम विन घडिय म इक्क जाहु "आदर्श गृहस्थ न्यायपूर्वक धनका अर्जन करता है, गुणी पुरुपो एव गुणोका सन्मान करता है, वह प्रशस्त और सत्यवाणी बोलता है, धर्म, अर्थ तथा काम पुरुषार्थका परस्पर अविरोध रूपसे सेवन करता है। इन पुरुषार्थोके योग्य स्त्री, स्थान, भवनादिको धारण करता है, वह लज्जाशील, अनुकूल आहार-विहार करनेवाला, सदाचारको अपनी जीवननिधि माननेवाले सत्पुरुषोकी सगति करता है, हिताहितके विचार करनेमे वह तत्पर रहता है, वह कृतज्ञ और जितेन्द्रिय होता है, धर्मकी विधिको सदा सुनता है, दयासे द्रवित अन्त करण रहता है, पापसे डरता है। इस प्रकार इन चौदह विशेषताओसे सम्पन्न व्यक्ति आदर्श गृहस्थकी श्रेणीमे समाविष्ट होता है।" ___ कोई-कोई व्यक्ति यह सोच सकते है कि जीवन एक सग्राम और सघर्पकी स्थितिमे है, उसमें न्याय-अन्यायकी मीमासा करनेवालेकी सुखपूर्ण स्थिति नही हो सकती। इसलिए जैसे भी वने स्वार्थ-साधनाके कार्यमे आगे वढना चाहिए। ___ यह मार्ग मुमुक्षुके लिए आदर्श नहीं है। वह अपने व्यवहार और आचारके द्वारा इस प्रकारके जगत्का निर्माण करना चाहता है, जहा ईर्पा, द्वेष, मोह, दभ आदि दुष्ट प्रवृत्तियोका प्रसार न हो। सब प्रेम और गान्तिके साथ जीवन-ज्योतिको विकसित करते हुए निर्वाणकी साधनामे उद्यत रहे, यह उसकी हार्दिक कामना रहती है। जघन्य स्वार्थोपर विजय पाये विना उन्नतिकी कल्पना एक स्वप्नमात्र है । जघन्य स्वार्थ और वासनापर जवतक विजय नही की जाती, तबतक आत्मा यथार्थ उन्नतिके पथपर १ न्यायोपात्तधनो यजन् गुणगुरून सद्गीस्त्रिवर्ग भज भन्योन्यानुगुणं तदहगृहिणी स्थानालयो ह्रीमयः। युक्ताहारविहार आर्यसमितिः प्राज्ञः कृतज्ञो वशी श्रृण्वन् धर्मविधि दयालुरघभीः सागारधर्म चरेत् ॥ -सागारधर्मामृत ११११।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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