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________________ सयम बिन घडिय म इक्क जाहु ७६ युग ज्ञानके गीत सुनकर आनन्दविभोर हो झूमने-सा लगता है, किन्तु बिना पुण्याचरणके यथार्थ आनन्दका निर्झर नही बहता । आनन्दरूपी सुवाससे युक्त कमलपुष्पके नीचे कण्टकोका जाल है। उनसे डरनेवाले को पकजकी प्राप्ति और उसके सौरभका लाभ कैसे हो सकता है ? अनन्तकालसे लगी हुई दुर्वासना और विकृतिको दूर करना सम्यक्चारित्रका सहयोग पाये बिना असम्भव है | अत: आगे साधनाके विशिष्ट अगभूत आचारके विषयमे विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। संयम बिन घडिय म इक्क जाहु भारतीय साहित्यका एक बोधपूर्ण रूपक है जिसे रूसके नामाकित विद्वान, टाल्स्टायने भी अपनाया है । एक पथिक किसी ऊँचे वृक्षकी शाखापर टॅगा हुआ है, उस शाखाको धवल और कृष्ण वर्णवाले दो चूहे काट रहे है। नीचे जडको मस्त हाथी अपनी सूंडमे फँसा उखाड़ने की तैयारी है । पथिकके नीचे एक अगाध जलसे पूर्ण तथा सर्प-मगर आदि भयकर जन्तुओंसे व्याप्त जलाशय है । पथिकके मुखके समीप एक मधुमक्खियोका छत्ता है जिससे यदा-कदा एकाध मधु-बिन्दु टपक कर पथिकको क्षणिक आनन्दका भान कराती है। इस मधुर रससे मुग्ध हो पथिक न तो यह सोचता है कि चूहोके द्वारा शांखाके कटनेपर मेरा क्या हाल होगा? वह यह भी नही सोचता कि गिरनेपर उस जलाशयमे वह भयकर जन्तुओका ग्रास बन जायगा । उसके विषयान्ध हृदयमे यह भी विचार पैदा नही होता, कि यदि हाथीने जोरका झटका दे वृक्षको गिरा दिया तो वह किस तरह सुरक्षित रहेगा ? अनेक विपत्तियो के होते हुए भी मधुकी एक विन्दुके रस-पानकी लोलुपतावश वह सब बातोको भूला हुआ है। कोई विमानवासी दिव्यात्मा उस पथिकके सकटपूर्ण भविष्यके कारण अनुकम्पायुक्त हो उसे समझाता है और अपने साथ निरापद
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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