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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
नहीं खेलने देना चाहिये इसी प्रकार दुष्ट लड़कों की संगति में भी बालक न खेलने पावे इस की पूरी खबरदारी रखनी चाहिये, ज्यों २ बालक उनमें बड़ा होता जावे त्यों २ उस को नित्य सुबह और शाम को खुली हवामें नियमपूर्वक गेंद फेंकना, दौड़ना, चकरी, तीर फेंकना, खोदना, जोतना और काटना आदि मनपसन्द खेल खेलने देना चाहिये परन्तु जिस और जितने खेल से वह अत्यन्त थक जावे तथा शरीर भारी पड़ जावे वह और उतना खेल नहीं खेलने देना चाहिये, जब कभी कोलेरा ( हैजा ) और ज्वर आदि रोग चल रहा हो तो उस समय में कसरत नहीं कराना चाहिये, कसरत करने के पीछे जब उस की थकावट कम हो जावे तब उसे खाने और पीने देना चाहिये, इस नियम के अनुसार पुत्र और पुत्री से कसरत कराते रहें ॥
१३- दाँतों की रक्षा - जब बालक सात आठ महीने का होता है तब उस के दाँत
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निकलना प्रारम्भ होता है. कभी २ ऐसा भी होता है कि दाँत दो तीन मास विलम्ब से भी निकलते है परन्तु ऐसी दशा में बालक को ज्वर, वमन, खांसी, चूंक झाड़ा और आंचकी आदि होने लगते है, जब / चालकके दाँत निकलने लगते हैं उस समय उस का स्वभाव चिड़चिड़ा ( चिढ़नेवाला ) हो जाता है, उस को कहीं भी अच्छा नहीं लगता है, दाँतों की जड़ों में खाज ( खुजली ) चलती है, बार बार दूध पीने की इच्छा होती है, अंगुली वा अंगूठे को मुख में डालता है क्योंकि उस से दाँतों की जड़ों के घिसने से अच्छा लगता है, इस समय पर बालक अन्य किसी वस्तु को मुख में न डालने पावे इस का ख्याल रखना चाहिये, क्योंकि अन्य किसी वस्तु के मुख में डालने की अपेक्षा तो अंगूठे को ही मुख में डालना ठीक है, परन्तु उस को हमेशा मुख में अंगूठा डालने की आदत न पड़ जावे इस का खयाल रखना चाहिये । यदि दांत निकलने के समय नित्य की अपेक्षा दो चार बार शौच अधिक लगे तो कोई चिन्ता की बात नहीं है परन्तु यदि दो चार वार से भी अधिक शौच लगने लगे तो उसका उचित उपाय करना चाहिये, यदि बालक को ज्वर वा तो चतुर वैद्य वा डाक्टर की सलाह लेकर उस का शीघ्रही उपाय इस समय में उस की अच्छी तरह से हिफाज़त करनी चाहिये, यदि पहना हुआ कपड़ा लार से भीग जावे तो शीघ्र उस कपड़े को उतार कर दूसरा स्वच्छ कपड़ा पहना देना चाहिये क्योंकि ऐसा न करने से सर्दी लगजाती है, जब बालक बड़ा हो जावे तब दाँतों को बुश अथवा दाँतन के कूंचेसे घिसने की उस की आदत डालनी चाहिये, उसके दांतो में मैल नहीं रहने देना चाहिये किन्तु पानी के कुल्ले करा के उस के मुँह और दांतो को साफ कराते रहना चाहिये ||
१ - जैसे ढींगला ढींगली (गुडा और गुड़िया ) का व्याह करना तथा उस से बालक जन्माना इत्यादि ॥'
वमन आदि हो जावे
करना चाहिये क्योंकि