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________________ तृतीय अध्याय ॥ १३१ मैदान में बाहर जाने देना चाहिये क्योंकि ऐसा होने से शीत लग जाने से बालक कद में छोटे और जुस्सा रहित हो जाते हैं इसी प्रकार गर्मी में खुले शरीर से मैदान में घूमने से काले हो जाते है, उन को लू लग जाती है और बीमार हो जाते है, एवं वर्षा ऋतु में भी खुले फिरने से श्याम हो जाते हैं और सर्दी आदि भी लग जाती है तथा ऐसे वर्ताव से अनेक प्रकार के रोगों का उन्हें शरण लेना पड़ता है, शीत गर्मी और वर्षा ऋतु में बालकों को खुले (उघाड़े) घूमने देने से शरीर से मजबूत होने की आशा नष्ट हो जाती है क्योंकि ऐसा होने से उनके अवयवों में अनेक प्रकारकी त्रुटि हो जाती है और वे प्रायः रोगी हो जाते है, वालकों के शरीर पर सूर्य का कुछ तेज पड़ता रहे ऐसा उपाय करते रहना चाहिये, घर में उन को प्रायः गोद ही में नहीं रखना चाहिये, शरीर में उष्णता रखने के लिये पूरे कपड़ों का पहनाना मानो उतनी खुराक उन के पेट में डालना है, शरीर पर पूरे कपड़े पहनाने से उष्णता कम जाती है और उष्णता के कायम रहने से अरोगता रहती है, बालकों को ऋतु के अनुकूल वस्त्र पहनाने में जो मा बाप द्रव्य का लोम करते है तथा बालकों को उघाड़े फिरने देते है यह उनकी बड़ी भूल है क्योंकि ऐसा होने से शरीर की गर्मी कम हो जाती है तथा गर्मी कम हो जाने से उस (गर्मी) को पूर्ण करने के लिये अधिक खुराक खानी पड़ती है जब ऐसा करना पड़ा तो समझ लीजिये कि जितना कपड़े का खर्च वचा उतना ही खुराक का खर्च बढ गया फिरलोभकरने से क्या लाम हुआ ! किन्तु ऐसे विपरीत लोमसे तो केवल शरीर को हानि ही पहुँचती है-इसलिये बालक को ऋतु के अनुकूल वस्त्र पहनाना ही लाभदायक है ॥ ४-दूधपिलाना-बालक के उत्पन्न होने पर शीघ्र ही उस को दूध नहीं पिलाना ___ चाहिये अर्थात् वालक को माता का दूध तीन दिन तक नहीं पिलाना चाहिये क्योंकि १-परन्तु इस विषय में किन्हीं लोगोका यह मत है कि-बालक के उत्पन्न होने के पीछे जब माता की थकावट दूर होजावे तव तीन या चार घण्टे के बाद से वालकको माता का ही दूध पिलाना चाहिये, वे यह भी कहते है कि-"कोई लोग बालक को एक दो दिन तक माताका दूध नहीं पिलाते हैं. किन्तु उस को गलथुली चटाते हैं सो यह रीति ठीक नहीं है क्योकि बालक के लिये तो माता का दूध पिलाना ही उत्तम है, वालक के उत्पन्न होने पर उस को तीन या चार घण्टे के बाद माता का दूध पिलाने से बहुत ही लाभ होताहै क्योंकि माता के दूध का प्रथम भाग रेचक होता है इस लिये उस के पीने से गर्मस्थान में रहने के कारण वालक के पेट की हड़ियों में लगा हुआ काला मल दूर होजाता है और माता को पीछे से आने वाले वेग के कम होजाने से रक प्रवाह के होने का सम्भव कम रहता है, यदि वालक को एक दो दिन तक माताका दूध न पिलाया जावे तो फिर वह (वालक) माता का दूध पीने नहीं लगता है और ऐसा होने से खन दूधसे भर जाने के कारण पक जाते है, इसलिये प्रथम से ही वालक को माता का ही दूध पिलाना चाहिये, बालक को प्रथम से ही माता का दूध पिलाने से यह मी लाम होता है कि यदि माता के खनों में दूध न भी हो तो भी आने लगता है" इत्यादि, परन्तु तमाम ग्रन्थों और अनेक विद्वब्बनों को सम्मति इस कथन से विपरीत है अर्थात् उनकी सम्मति वही है जो कि हमने ऊपर लिखा है, अर्थात जन्म के पीछे तीन या चार दिन के बादसे बालक को माता का दूध पिलाना चाहिये।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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