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तृतीय अध्याय ॥
११५ पड़ने लगता है, इस मासमें ऊपर कहे हुए आहार के सिवाय दूधके साथ साठी चांवल
खाना चाहिये। 8-चौथे महीने में गर्मिणी का शरीर भारी पड़ जाता है, गर्भ स्थिर हो जाता है तथा उस
के सब अंग क्रम २ से बढने लगते हैं, जब गर्भ के हृदय उत्पन्न होता है तब गर्मिणी स्त्री के ये चिह होते हैं-अरुचि, शरीर का भारीपन, अन्न की इच्छा का न होना, कमी अच्छे वा बुरे पदार्थों की इच्छा का होना, स्तनों में दूध की उत्पत्ति, नेत्रों का शिथिल होना, ओठ और स्तनों के मुख का काला होना, पैरों में शोथ, मुख में पानी का आना आदि, तथा प्रायः इसी महीने में गर्भवती के पूर्व कहा हुआ दोहद उत्पन्न होने लगता है अर्थात् उस के कई प्रकार के इरादे पैदा होते हैं, मन को अच्छे लगनेवाले पदार्थों की इच्छा होती है, इस लिये उस समय में उस के अभीष्ट पदार्थ पूरे तौर से उसे देने चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से बालक वीर्यवान् और बड़ी आयुवाला होता है, इस दोहद के विषय में यह खाभाविक नियम है कि यदि पुण्यात्मा जीव गर्म में आया हो तो गर्मिणी के अच्छे इरादे पैदा होते हैं तथा यदि पापी जीव गर्म में आया हो तो उस के बुरे इरादे होते हैं, तात्पर्य यह है कि-गर्मिणी को जिन पदार्थों की इच्छा हो उन्हीं पदार्थों के गुणों से युक्त वालक होता है, यदि गर्मिणी की इच्छा के अनुसार उस को मन चाहे पदार्थ न दिये जावें तो बालक अनेक त्रुटियों से युक्त होता है, खराब और भयंकर वस्तु के देखने से बालक भी खराब लक्षणों से युक्त होता है, इस लिये यथा शक्य ऐसा प्रयत्न करना चाहिये कि गर्भिणी स्त्री के देखने में अच्छी २ वस्तु ये ही आवें तथा अच्छी २ वस्तुओं पर ही उस की इच्छा चले क्योंकि विकारवाले पदार्थ गर्भ को बहुत बाधा पहुंचाते है, इस लिये उन का, त्याग
करना चाहिये। ५-पांचवें महीने में हाथ पांव और मुख आदि पांचों इन्द्रियां तैयार हो जाती हैं,
मांस और रुधिर की मी विशेषता होती है, इस लिये गर्मवती का शरीर उस दशा में बहुत दुर्वल हो जाता है, अतः उस समय में स्त्री को घी और दूध के साथ अन्न
देते रहना चाहिये। ६-छठे महीने में पित्त और रक्त (लोहू) बनने का आरम्भ होता है तथा वालक के शरीर में बल और वर्ण का सञ्चार होता है, इस लिये गर्भवती के शरीर का वल और वर्ण कम हो जाता है, अतः उस समय में भी उस को घी और दूध का आहार ऊपर लिखे अनुसार देते रहना चाहिये । ७-सातवें महीने में छोटी बड़ी नसें तथा साढे तीन कोटि (करोड़) रोम भी
वनते हैं और वालक के सव अंग अच्छे प्रकार से मालूम पड़ने लगते हैं तथा उस का