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________________ १०२ जैनसम्प्रदायशिक्षा | अर्थात् २४ दिनमें भी होता है, यह रजो दर्शन प्रारम्भ दिवस से लेकर ३ से ५ दिवस तक देखा जाता है परन्तु कई समयों में कई स्त्रियों के एक वा दो दिवस न्यूनाधिक भी देखा जाता है | नियमित रजोदर्शना स्त्रियों के जब प्रथम रजोदर्शनका प्रारंभ होता है तब वह नियमित नहीं होता है - अर्थात् कभी २ कई महीने चढ़ जाते हैं अर्थात् पीछे आता है, इस प्रकार कुछ कालतक अनियमित ही रहता है. पीछे नियमित हो जाता है, जिन स्त्रियों के अनियमित समय पर रजोदर्शन आता है उन स्त्रियों के गर्म रहने का सम्भव नहीं होता है, केवल यही कारण है कि वंध्या स्त्रियों के यह रजोदर्शन प्रायः अनियमित समय पर होता है, जिन के अनियमित समय पर रजोदर्शन होता है. उन स्त्रियों को उचित है किअनियमित समय पर रजोदर्शन होने के कारणोंसे अपने को पृथक् रक्खें ( बचाये रहें) क्योंकि गर्भाधान के लिये रजो दर्शनका नियमित समय पर होना ही आवश्यक है, जिन स्त्रियों के नियमित समय पर बराबर रजोदर्शन होता है तथा नियमित रीति पर उसके चिह्न दीख पड़ते है. एवं उसकी अन्दर की स्थिति उसका दिखाव और बन्द होना आदि मी नियमित हुआ करते हैं. उन्हीं के गर्भस्थिति का संभव होता है, नवल (नवीन) वधू के रजोदर्शन के प्राप्त होने के पीछे तीन या चार वर्ष के अन्दर गर्म रहता है और किन्हीं स्त्रियों के कुछ बिलम्ब से भी रहा करता है | रजोदर्शन आने के - पहिले होनेवाले चिन्हः || जब स्त्री के रजोदर्शन आनेवाला होता है तब पहिले से कमर में पीड़ा होती है, पेंडू भारी रहता है, किसी २ समय पेंडू फटने सा लगता है, शरीर में कोई भीतरी पीड़ा हो ऐसा मालूम होता है, शरीर बेचैन रहता है, सुस्ती मालूम होती है, अल्प परिश्रम से ही थकावट आ जाती है, काम काज में मन नहीं लगता है, पड़ी रहने को मन चाहता है, शरीर भारी सा रहता है दस्त की कब्नी रहती है, किसी २ के वमन और माथे में दर्द भी हो जाता है तथा जब रजोदर्शन का समय अति समीप आ जाता है तब मन बहुत तीव्र हो जातां है, इन चिह्नों में से किसी को कोई चिह्न मालूम होता है तथा किसी को कोई चिह्न मालूम होता है. परन्तु ये सब चिह्न रजोदर्शन होने के पीछे किन्हीं के धीमे पड़ जाते हैं तथा किन्हीं के बिलकुल मिट जाते है, कभी २ यह भी देखा जाता है कि कई कारणोंसे किन्हीं स्त्रियों को रजोदर्शन होने के पीछे एक वा दो दिनतक नियमके विरुद्ध दिन में कई बार शौच जाना पड़ता है | १- अनियमित समय पर रजोदर्शन आने के कारण आगे लिखेंगे ॥ 4
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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