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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ इतिहासों के अवलोकन से विदित होता है कि जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि जी तथा दादा साहिब श्री जिनदत्त सूरि जी आदि अनेक जैनाचार्य इस विद्या के पूरे अभ्यासी थे, इस के अतिरिक्त-थोड़ी शताब्दी के पूर्व आनन्दधन जी महाराज, चिदानन्द (कपूरचन्द) जी महाराज तथा ज्ञानसार (नारायण )जी महाराज आदि बड़े २ अध्यात्म पुरुष हो गये हैं जिन के बनाये हुए अन्थों के देखने से विदित होता है किआत्मा के कल्याण के लिये पूर्व काल में साधु लोग योगाभ्यास का खूब बर्ताव करते थे, परन्तु अब तो कई कारणों से वह व्यवहार नहीं देखा जाता है, क्योंकि प्रथम तोअनेक कारणों से शरीर की शक्ति कम हो गई है, दूसरे-धर्म तथा श्रद्धा घटने लगी है, तीसरे-साधु लोग पुस्तकादि परिग्रह के इकडे करने में और अपनी मानमहिमा में ही साधुत्व ( साधुपन ) समझने लगे हैं, चौथे-लोम ने भी कुछ २ उन पर अपना पञ्जा फैला दिया है, कहिये अब खरोदयज्ञान का झगड़ा किसे अच्छा लगे! क्योंकि यह कार्य तो लोमरहित तथा आत्मज्ञानियों का है किन्तु यह कह देने में भी अत्युक्ति न होगी कि मुनियों के आत्मकल्याण का मुख्य मार्ग यही है, अब यह दूसरी बात है कि वे (मुनि) अपने आत्मकल्याण का मार्ग छोड़ कर अज्ञान सांसारिक जनों पर अपने ढोंग के द्वारा ही अपने साधुत्व को प्रकट करें।
प्राणायाम योग की दश भूमि हैं, जिन में से पहिली भूमि (मञ्जल) खरोदयज्ञान ही है, इस के अभ्यास के द्वारा बड़े २ गुप्त भेदों को मनुष्य सुगमतापूर्वक ही जान सकते हैं तथा. बहुत से रोगों की ओषधि भी कर सकते है।
खरोदय पद का शब्दार्थ श्वास का निकालना है, इसी लिये इस में केवल श्वास की पहिचान की जाती है और नाकपर हाथ के रखते ही गुप्त बातों का रहस्य चित्रवत् सामने आ जाता है तथा अनेक सिद्धियां उत्पन्न होती हैं परन्तु यह दृढ निश्चय है किइस विद्या का अभ्यास ठीक रीति से गृहस्खों से नहीं हो सकता है, क्योंकि प्रथम तोयह विषयं अति कठिन है अर्थात् इस में अनेक साधनों की आवश्यकता होती है, दूसरे इस विद्या के जो ग्रन्थू है उन में इस विषय का अति कठिनता के साथ तथा अति संक्षेप से वर्णन किया गया है जो सर्व साधारण की समझ में नहीं आ सकता है, तीसरेइस विद्या के ठीक रीति से जानने वाले तथा दूसरों को सुगमतों के साथ अभ्यास करा सकने वाले पुरुष विरले ही स्थानों में देखे जाते हैं, केवल यही कारण है कि वर्तमान में इस विद्या के अभ्यास करने की इच्छा वाले पुरुष उस में प्रवृत्त हो कर लाभ होने के
१-योगाभ्यास का विशेष वर्णम देखना हो तो "विवेकमार्तण्ड' 'योग रहस' तथा 'योगशास्त्र आदि अन्यों को देखना चाहिये ॥ २-छिपे हुए रहस्यों ॥ ३-आसानी से॥ ४-तस्वीर के समान॥ ५-आसानी ॥ -तत्पर वा लगा हुआ ॥