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________________ पञ्चम अध्याय॥ ७०९ का पहिला आधा भाग, विष्टि, वैधृति, व्यतीपात, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (तेरस ) से प्रतिपद् (पड़िवा ) तक चार दिवस, दिन और रात्रि के बारह वजने के समय पूर्व और पीछे के दश पल, माता के ऋतुधर्म संबंधी चार दिन, पहिले गोद लिये हुए लड़के वा लड़की के विवाह आदि में उस के जन्मकाल का मास; दिवस और नक्षत्र, जेठ का मास, अधिक मास, क्षय मास, सत्ताईस योगों में विष्कुम्भ योग की पहिली तीन घड़ियाँ, व्याघात योग की पहिली नौ घड़ियाँ, शूल योग की पहिली पाँच घड़ियाँ, वज्र योग की पहिली नौ घड़ियाँ, गण्ड योग की पहिली छः घड़ियाँ, अतिगण्ड योग की पहिली छ: घड़ियाँ, चौथा चन्द्रमा, आठवॉ चन्द्रमा, बारहवा चन्द्रमा, कालचन्द्र, गुरु तथा शुक्र का अस्त, जन्म तथा मृत्यु का सूतक, मनोभा तथा सिह राशि का वृहस्पति (सिंहस्थ वर्षे ), इन सब तिथि आदि का शुम कार्य में ग्रहण नहीं करना चाहिये। १-सूतक विचार तथा उस में कर्त्तव्य-पुत्र का जन्म होने से दश दिन तक, पुत्री का जन्म होने से घारह दिन तक, जिस स्त्री के पुत्र हो उस (बी) के लिये एक मास तक, पुत्र होते ही मर जावे तो एक दिन तक, परदेश में मृत्यु होने से एक दिन तक, घर मे गाय; मैंस; घोडी और ऊँटिनी के व्याने से एक दिन तक, घर में इन ( गाय आदि ) का भरण होने से जप तक इन का मृत शरीर घर से बाहर न निकला जावे तब तक, दास दासी के पुत्र तथा पुत्री आदि का जन्म वा मरण होने से तीन दिन तक तथा गर्भ के गिरने पर जितने महीने का गर्भ गिरे उतने दिनों तक सूतक रहता है। बिस के गृह मै जन्म वा मरण का सूतक हो वह वारह दिन तक देवपूजा को न करे, उस में भी मृतकसम्वधी सूतक मे घर का मूल स्कध (मूल कॉपिया) दश दिन तक देवपूजा को न करे, इस के सिवाय शेष घर वाले तीन दिन तक देवपूजा को न करें, यदि मृतक को छुआ हो तो चौवीस प्रहर तक प्रतिक्रमण (पडिकमण) न करे, यदि सदा का भी अखण्ड नियम हो तो समता भाव रख कर शम्बरपने में रहे परन्तु मुख से नवकार मन्त्र का भी उच्चारण न करे, स्थापना जी के हाथ न लगावे; परन्तु यदि मृतक को न छुआ हो तो केवल आठ प्रहर तक प्रतिक्रमण (पदिकमण) न करे, भैंस के बचा होने पर पन्द्रह दिन के पीछे उस का दूध पीना कल्पता है, गाय के बचा होने पर भी पन्द्रह दिन के पीछे ही उस का भी दूध पीना कल्पता है तथा बकरी के बच्चा होने पर उस समय से आठ दिन के पीछे दूध पीना कल्पता है। ऋतुमती स्त्री चार दिन तक पात्र आदि का स्पर्श न करे, चार दिन तक प्रतिक्रमण न करे तथा पाँच दिन तक देवपूजा न करे, यदि रोगादि किसी कारण से तीन दिन के उपरान्त भी किसी स्त्री के रक चलता हुआ दीखे तो उस का विशेष दोप नहीं माना गया है, ऋतु के पश्चात् स्त्री को उचित है कि-शुद्ध विवेक से पवित्र हो कर पाँच दिन के पीछे स्थापना पुस्तक का सर्श करे तया साधु को प्रतिलाम देवे, ऋनुमती स्त्री जो तपस्या (उपवासादि ) करती है वह तो सफल होती ही है परन्तु उसे प्रतिकमण आदि का करना योग्य नहीं है (जैसा कि ऊपर लिख चुके है), यह चर्चरी अन्य में कहा है, जिस घर में जन्म का मरण का सूतक हो वहॉ चारह दिन तक साधु आहार तथा पानी को न यहरे (ले), क्योंकि-निशीथसूत्र के सोलहवे उद्देश्य मे जन्म मरण के सूतक से युक्त घर दुर्गछनीक कहा है।
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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