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________________ पञ्चम अध्याय ।। ६६९ गलत सिद्ध होती है, क्योंकि श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज का खर्गवास विक्रम संवत् ५८५ (पाँच सौ पचासी) में हुआ था और यह बात बहुत से ग्रन्थों से निर्मम सिद्ध हो चुकी है, इस के अतिरिक्त-उपाध्याय श्री समयसुन्दर जी महाराजकृत शेत्रुजय रास में तथा श्री वीरविजय जी महाराज कृत ९९ प्रकार की पूजा में सोलह उद्धार शेत्रुञ्जय का वर्णन किया है, उस में विक्रम संवत् १०८ में तेरहवा उद्धार जावड़ नामक पोरवाल का लिखा है, इस से सिद्ध होता है कि-विक्रम संवत् १०८ से पहिले ही किसी जैनाचार्य ने पोरवालों को प्रतिबोध देकर उक्त नगरी में उन्हें जैनी बनाया था। । सूचना-इस पोरवाल वंश में-विमलशाह, धनाशाह, वस्तुपाल और तेजपाल आदि अनेक पुरुष धर्मज्ञ और अनर्गल लक्ष्मीवान् हो गये है, जिन का नाम इस संसार में वर्णाक्षरों (सुनहरी अक्षरों ) में इतिहासों में संलिखित है, इन्ही का संक्षिप्त वर्णन पाठकों के ज्ञानार्थ हम यहाँ लिखते है: पोरवाल ज्ञातिभूषण विमलशाह मन्त्री का वर्णन ॥ गुजेरात के महाराज भीमदेव ने विमलशाह को अपनी तरफ से अपना प्रधान अधिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आबू पर भेजा था, यहाँ पर उक्त मन्त्री जी ने अपनी १-इन्हों ने मुल्क गोडवाड में श्री आदिनाथ खामी का एक मनोहर मन्दिर बनवाया था (जो कि सादरी से तीन कोश पर अभी राणकपुर नाम से प्रसिद्ध है), इस मन्दिर की उत्तमता यहाँ तक प्रसिद्ध है कि-रचना में इस के समान दूसरा मन्दिर नहीं माना जाता है, कहते हैं कि-इस के वनवगने में ९९ लाख खर्ग मोहर का खर्च हुआ था, यह बात श्री समयसुन्दर जी उपाध्याय ने लिखी है। MANTR-आयू और चन्द्रावती के राजकुटुम्बजन अणहिलवाडा पन के महाराज के माण्डलिक थे, इन PHIR इतिहास इस प्रकार है कि यह घश चालुक्य वश का था, इस वश में नीचे लिखे हुए लोगों ने इस कार राज्य किया था कि-मूलराज ने देखी सन् ९४२ से १९६ पर्यन्त, चामुण्ड ने ईस्वी सन् ९९६ से १०१० तक, बल्लम ने ६ महीने तक, दुर्लभ ने ईखी सन् १०१० से १०२२ तक (यह जैनवर्मी या), भीमदेव ने ईस्वी सन् १०२२ से १०६२ तक, इस की वरकरारी में धनराज आवू पर राज्य करता था तथा भीमदेव गुजरात देश पर राज्यशासन करता था, उस समय मालवे मे धारा नगर में भोजराज गद्दी पर 7 था, आबू के राजा धनराजने भणहिल पट्टन के राजवा का पक्ष छोड कर राजा भोज का पक्ष किया था, इसी लिये भीमदेव ने अपनी तरफ से विमलशाह को अपना प्रधान अधिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आबू पर भेजा था और उसी समय में विमलशाह ने श्री आदिनाथ का देवालय बनवाया था, भीमदेव ने धार पर भी माक्रमण किया था और इन्हीं की वरकरारी मै गज़नी के महमूद ने सोमनाथ (महादेव) का मन्दिर लूटा था, इस के पीछे गुजरात का राज्य कर्ण ने इसी सन् १०६३ से १०९३ तक किया, जयसिंह अथवा सिद्धराज ने ईखी सन् १०९३ से ११४३ तक राज्य किया (यह जयसिंह चालुक्य वश में एक वडा तेजखी और धुरन्धर पुरुप हो गया है), इस के पीछे कुमारपाल ने ईखी सन् ११४४ से ११५३ तक राज्य क्रिया (इस ने जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र जी सूरि से जैन धर्म का ग्रहण किया था, उस
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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