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चतुर्थ मध्याय ॥
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जलन होती है तथा चिनग भी होती है इस लिये इसे चिनगिया सुज़ाखू कहते है, इस के साथ में शरीर में बुखार भी आ जाता है, इन्द्रिय भरी हुई तथा कठिन जेवड़ी ( रस्सी) समान हो जाती है तथा मन को अत्यन्त विकलता ( बेचैनी ) प्राप्त होती
दिये विना नहीं रहती है, आवश्यक शिक्षाओं में ऐसी
लिये इतनी शिक्षायें कहीं
अति बडा कहा जावे
शरीर के सम्पूर्ण वॉघों के बॅघ जाने के पहिले जो बालक इस कुटेव में पढ़ जाता है उस का शरीर पूर्ण वृद्धि और विकाश को प्राप्त नहीं होता है क्योंकि इस कुटेव के कारण शरीर की वृद्धि और उस के विकाश में व्यवरोध ( रुकावट ) हो जाता है, उस की हट्टिया और नसें झलकने लगती हैं, आँखें बैठ जाती है और उनके आस पास काला कुँडाला सा हो जाता है, आँख का तेज कम हो जाता है, दृष्टि निर्वल तथा कम हो जाती है, चेहरे पर फुसिया उठ कर फूटा करती है, बाल झर पड़ते हैं, माथे में टाल (टाड) पड जाती है तथा उस में दर्द होता रहता है, पृष्ठवश ( पीठका वास ) तथा कमर में शूल (दर्द) होता है, सहारे के बिना सीधा बैठा नहीं जाता है, प्रातःकाल विछौने पर से उठने को जी नहीं चाहता है तथा किसी काम में लगने की इच्छा नहीं होती है इत्यादि । सत्य तो यह है कि अस्वाभाविक रीति से ब्रह्मचर्य मग करने रूप पाप की ये सब खराविया नहीं किन्तु उस से बचने के लिये ये सब शिक्षायें है, क्योंकि सृष्टि के नियम से विरुद्ध होने से सृष्टि इस पाप की शिक्षाओं ( सजाओं) को हम को विश्वास है कि दूसरे किसी शारीरिक पाप के लिये सृष्टि के नियम की कठिन शिक्षाओं का उल्लेख नहीं किया गया होगा और चूकि इस पापाचरण के गई हैं, इस से निव्यय होता है कि यह पाप बडा भारी है, इस महापाप को विचार कर यही कहना पड़ता है कि इस पापाचरण की शिक्षा ( सजा ) इतने से ही नहीं पर्याप्त (काफी) होती है, ऐसी दशा में सृष्टि के नियम को अति कठिन कहा जाने वा इस पाप को किन्तु सृष्टि का नियम तो पुकार कर कह रहा है कि इस पापाचरण की शिक्षा ( सजा ) पापाचरण करनेवाले को ही केवल नहीं मिलती है किन्तु पापाचरण करनेवाले के लड़कों को भी थोडी बहुत भोगनी आवश्यक है, प्रथम तो प्रायः इस पाप का आचरण करने वालों के सन्तान उत्पन्न ही नहीं होती हैं, यदि दैवयोग से उस नराधम को सन्तान प्राप्त होती हैं तो वह सन्तान भी थोडी बहुत मा बाप के इस पापाचरण की प्रसादी को लेकर ही उत्पन्न होती है, इस में सन्देह नहीं है, इस लेख से हमारा प्रयोजन तरुण वयवालों को भड़काने का नहीं है किन्तु इन सब सत्य बातों को दिखला कर उन को इस पापाचरण से रोकने का है तथा इस पापाचरण मे पड़े हुओं को उस से निकालने का है, इस के अतिरिक्त इस लेख से हमारा यह भी प्रयोजन है कियोग्य माता पिता पहिले ही से इस पापाचरण से अपने बालो को बचाने लिये पूरा प्रयत्न करें और ऐसे पापाचरण वाले लोगों के भी जो सन्तान होवें तो उन को भी उन की अच्छी तरह से देख रेख और सम्भाल रखनी चाहिये क्योंकि मा बाप के रोगों की प्रसादी लेकर जो लडके उत्पन्न होते हैं उस प्रसादी की कुटेव भी उन में अवश्य होती है, इसी नियम से इस पापाचरण वालों के जो लडके होते है उन में भी इस (हाथ से वीर्यपात करनेरूप ) कुटेव का सञ्चार रहता है, इस लिये जिन मा वापों ने अपनी अज्ञानावस्था २ भूलें की हैं तथा उन का जो २ फल पाया है उन सब बानों से विज्ञ होकर और उस विषय के अपने अनुभव को ध्यान में लाकर अपनी सन्तति को ऐसी कुटेव में न पढ़ने देने के लिये प्रतिक्षण उस पर दृष्टि रखनी चाहिये और इस कुटेवं की खरावियों को बतला देना चाहिये ।
अपनी सन्तति को युक्ति के द्वारा