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________________ ४१० जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ ३- भरी नाड़ी - जिस प्रकार नाडीपरीक्षा में अंगुलियों को नाड़ी का वेग अर्थात् चाल मालूम देती है उसी प्रकार नाड़ी का वजन अथवा कद भी मालूम होता है, यह वज़न अथवा कद जब आवश्यकता से अधिक बढ़ जाता है तब उस को भरी नाड़ी अथवा बड़ी नाड़ी कहते हैं, जैसे- खून के भराव में, पौरुष की दशा में, बुखार में तथा चरम में नाड़ी भरी हुई मालूम देती है, इस भरी हुई नाड़ी से ऐसी हालत मालूम होती है कि शरीर में खून पूरा और बहुत है, जिस प्रकार नदी में अधिक पानी के आने से पानी का जोर बढ़ता है उसी प्रकार खून के भराव से हुई लगती है । ४ - हलकी नाड़ी-थोड़े खूनवाली नाड़ी को छोटी या हलकी कहते हैं, क्योंकि अंगुलि के नीचे ऐसी नाड़ी का कद पतला अर्थात् हलका लगता है, जिन रोगों में किसी द्वार से खून बहुत चला गया हो या जाता हो ऐसे रोगों में, बहुत से पुराने रोगों में, हैजे में तथा रोग के जाने के बाद निर्बलता में नाड़ी पतली सी मालूम देती है, इस नाड़ी से ऐसा मालूम हो जाता है कि इस के शरीर में खून कम है या बहुत कम हो गया है, क्योंकि नाड़ी की गति का मुख्य आधार खून ही है, इस लिये खून के ही वजन से नाड़ी के ४ वर्ग किये जाते हैं - मरीहुई, मध्यम, छोटी वा पतली और बेमालूम, खून के विशेष जोर में भरीहुई, मध्यम खून में मध्यम तथा थोड़े खून में छोटी वा पतली नाड़ी होती है, एवं हैने के रोग में खून बिलकुल नष्ट होकर नाड़ी अंगुली के नीचे कठिनता से मालूम पड़ती है उस को बेमालूम नाड़ी कहते हैं । ५ -- सख्त नाड़ी - जिस घोरी नस में होकर खून बहता है उस के भीतरी पड़दे की तांतों में संकुचित होने की शक्ति अधिक हो जाती है, इस लिये नाड़ी सख्त चलती है, परन्तु जब वही संकुचित होने की शक्ति कम हो जाती है तब नाड़ी नरम चलती है, इन दोनों की परीक्षा इस प्रकार से है कि नाड़ीपर तीन अंगुलियों को रख कर ऊपर की (तीसरी) अंगुलि से नाड़ी को दबाते समय यदि बाकी की (नीचे की ) दो अंगुलियों को धड़का लगे तो समझना चाहिये कि नाड़ी सख्त है और दोनों अंगुलियों को धड़का न लगे तो नाड़ी को नरम समझना चाहिये । ६ - अनियमित नाड़ी - नाड़ी की परिमाण के अनुकूल चाल में यदि उस के दो उनकों के बीच में एक सदृश समयविभाग चला आवे तो उसे नियमित नाड़ी (कायदे के अनुसार चलनेवाली नाड़ी) जानना चाहिये, परन्तु जिस समय कोई रोग हो और नाड़ी नियमविरुद्ध (बेकायदे) चले अर्थात् समय विभाग ठीक न चलता हो (एक ठनका जल्दी आबे और दूसरा अधिक देरतक ठहर कर आवे) उस नाड़ी को अनियमित नाड़ी समझना चाहिये, जब ऐसी ( अनियमित ) नाड़ी चलती है तव
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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