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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३६७ बहुत गर्म हवा से जलन, रूखापन, गर्मवायु, प्रमेह, प्रदर, भ्रम, अँधेरी, चक्कर, भँवर आना, वातरक्त, गलत्कुष्ठ, शील, ओरी, पिंडलियों का कटना, हैजा और दस्त आदि रोग उत्पन्न होते है ॥ २ - पानी - निर्मल (साफ) पानी के जो लाभ है वे पहिले लिख चुके हैं उन के लिखने की अब कोई आवश्यकता नहीं है । खराब पानी से - हैजा, कृमि, अनेक प्रकार का ज्वर, दस्त, कामला, अरुचि, मन्दाग्नि, अजीर्ण, मरोड़ा, गलगण्ड, फीकापन और निर्बलता आदि अनेक रोग उत्पन्न होते है । अधिक खारवाले पानी से -पथरी, अजीर्ण, मन्दाग्नि और गलगण्ड आदि रोग होते है । सड़ी हुई वनस्पति से अथवा दूसरी चीज़ों से मिश्रित ( मिले हुए) पानी से दस्त, शीत ज्वर, कामला और तापतिल्ली आदि रोग होते है । मरे हुए जन्तुओं के सड़े हुए पदार्थ से मिले हुए पानी से हैजा, अतीसार तथा दूसरे भी भयंकर और जहरीले बुखार उत्पन्न होते है । जल कर प्राणों को त्यागते हैं, इस के अतिरिक्त इस निकृष्ट कार्य से हवा भी विगड जाती है कि जिस से प्राणी मात्र की आरोग्यता में अन्तर पड जाता है, इस से द्रव्य का नुकसान तो होता ही है किन्तु उस के साथ मे महारम्भ (जीवहिंसाजन्य अपराध ) भी होता है, तिस पर भी तुर्रा यह है कि-घर वालों को कामों की अधिकता से घर फूंक के भी तमाशा देखने की नौबत नहीं पहुँचती है । रण्डी (वेश्या) का नाच - सत्य तो यह है कि- रण्डियों के नाच ने इस भारत को गारत कर दिया है, क्योंकि तबला और सारंगी के बिना भारत वासियों को कल ही नहीं पड़ती है, जब यह दशा है तो बरात में आने जाने वालों के लिये वह सजीवनी क्यों न हो । समधी तथा समधिन का भी उस के बिना नहीं भरता है, ज्यों ही बरात चली त्यों ही विषयी जन विना बुलाये चलने लगते हैं, वेश्या को जो रुपया दिया जाता है उस का तो सत्यानाश होता ही है किन्तु उस के साथ में अन्य भी बहुत सी हानियों के द्वार खुल जाते हैं, देखो । नाच ही में कुमार्गी मित्र उत्पन्न हो जाते हैं, नाच ही मे हमारे देश 5 धनाढ्य साहूकार लज्जा को तिलाञ्जलि देते हैं, नाच ही में वेश्याओं को अपनी शिकार के फॉंसने तथा नौ जवानों का सत्यानाश मारने का समय ( मौका ) हाथ लगता है, बाप बेटे भाई और भतीजे आदि सब ही छोटे वडे एक महफिल में बैठकर लना का परदा उठा कर अच्छे प्रकार से घूरते तथा अपनी आंखों को गर्म करते हैं वेश्या भी अपने मतलब को सिद्ध करने के लिये महफिलों में ठुमरी, टप्पा, चारहमासा और गजल आदि इश्क के द्योतक रसीले रागों को गाती है, तिस पर भी तुरी यह है कि ऐसे रसीले रागों के साथ में तीक्ष्ण कटाक्ष तथा हाव भाव भी इस प्रकार बताये जाते हैं कि जिन से मनुष्य लोट पोट हो जाते हैं तथा खूब सूरत और शृंगार किये हुए नौ जवान तो उस की सुरीली आवाज़ और उन तीक्ष्ण कटाक्ष आदि से ऐसे घायल हो आते है कि फिर उन को विषाय इश्क वस्ल यार के और कुछ भी नहीं सूझता है, देखिये ! किसी महात्मा ने कहा है कि
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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