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________________ ३६४ चैनसम्प्रदायशिक्षा || किसी का मिश्र होता है, मिश्रित प्रकृतिवालों में से कोई २ पुरुष दो प्रकृति की प्रधानतावाले तथा कोई २ तीनों प्रकृतियों की प्रधानतावाले भी होते हैं । गर्म मिजाज़वाला मनुष्य प्रायः शीघ्र ही क्रोध तथा बुखार के आधीन हो जाता है, ठंढे मिजाज़वाला मनुष्य प्रायः शीघ्र ही शर्दी कफ और दम आदि रोगों के आधीन हो नाता है, एवं वायु प्रकृतिवाला मनुष्य प्रायः शीघ्र ही वादी के रोगों के आधीन हो जाता है। यद्यपि मूल में तो यह प्रकृतिरूप दोष होता है परन्तु पीछे जब उस प्रकृति को वि• गाड़नेवाले आहार विहार से सहायता मिलती है तब उसी के अनुसार रोगोत्पत्ति हो जाती है, इसलिये प्रकृति को भी शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले कारणों में गिनते हैं ॥ उठा देना चाहिये । बुद्धिमान् जन यद्यपि इन पांचों ही कुरीतियों के फल को अच्छे प्रकार से जानते ही होगे तथापि साधारण पुरुषों के ज्ञानार्थ इन कुरीतियों की हानियों का सक्षेप से वर्णन करते है: सिवाय यह भी विचार रात में बहुत भीड़भाड़ का ले जाना - प्रथम तो यही विचार करना चाहिये कि बरात को खूब ठाठ वाट से ले जाने में दोनों तरफ के लोगोंको क्लेश होता है और अच्छा प्रवन्ध तथा आवर सत्कार नहीं बन पड़ता है, इस के सिवाय इधर उधर का धन भी बहुत खर्च हो जाता है, अतः बहुत धूमधाम से बरातको ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं है, वरन थोड़ी सी बरात को अच्छे सजाव के साथ ले जाना अति उत्तम है, क्योंकि थोड़ी सी बरात का दोनों तरफ वाले उत्तम खान पान आदि से अच्छे प्रकार से सत्कार कर अपनी शोभा को कायम रख सकते हैं, इस के की बात है कि इस कार्य मे विशेष धन का लगाना वृथा ही है, क्योकि यह कोई चिरस्थायी कार्य तो है ही नहीं सिर्फ दो दिन की बात है, अधिक बरात के ले जाने में नेकनामी की प्रायः कम आशा हो ती है किन्तु वदनामी की ही सम्भावना रहती है, क्योंकि यह कायदे की बात है कि समर्थ पुरुष को भी बहुत से जनोंका उनकी इच्छा के अनुसार पूरा २ प्रवध करने में कठिनता पडती है, बस जहां वरातियां के आदर सत्कार में ज़रा त्रुटि हुई तो शीघ्र ही वराती जन यही कहते हैं कि अमुक पुरुष की बरात नं 'गये थे वहा खाने पीने तक का भी कुछ प्रवन्ध नहीं था, सव लोग भूखों के मारे मरते थे, पानी तथा दाना घास भी समय पर नहीं मिलता था, इधर सेठजी ले जाने के समय तो वडी सीप साप (लल्लो चप्पो) करते थे परन्तु वहां तो दुम दवाये जनवासे ही में बैठे रहे इत्यादि, कहिये यह कितना अशोमा का स्थान है । एक तो घन जावे और दुसरे कुया हो, इस मे क्या फायदा है ? इस लिये बुद्धिमानों को थोड़ी ही सी वरात ले जाना चाहिये । वखेर या लूट-खेर का करना तो सर्व प्रकार ही महा हानिकारक कार्य है, देखो । वसेर का नाम सुनकर दूर २ के भगी आदि नीच जाति के लोग तथा लडे, लॅगडे, अपाहज, कॅगले और दुर्बल आदि इकट्ठे होते हैं, क्योंकि लालच बुरी बला है, इधर नगर निवासियों में से सब ही छोटे बड़े छत और अटारियो पर तथा बाज़ारों में इकट्ठे होकर ठटुके ठट्ट लग जाते है, वखेर करनेवाले वहा पर मुहिया अविक मारते हैं जहा त्रियों तथा मनुष्यों के समूह अधिक होते हैं, उन मुट्टियों के चलते ही हजारों स्त्री पुरुष
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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