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जैनसम्प्रदायशिक्षा || (१) सामान्यभूत उसे कहते है-जिस भूतकाल से यह निश्चय न हो कि-काम थोड़े
समय पहिले हो चुका है या बहुत समय पहिले, जैसे खाया, मारा, इत्यादि । -(२) पूर्णभूत उसे कहते है कि जिस से मालम हो कि काम बहुत समय पहिले
हो चुका है, जैसे-खाया था, मारा था, इत्यादि । • (३) अपूर्णभूत उसे कहते हैं जिस से यह जाना जाय कि क्रिया का आरंम तो
हो गया है परन्तु उस की समाप्ति नहीं हुई है, जैसे-खाता था, मारता था,
पढ़ाता था, इत्यादि । (४) आसन्नभूत उसे कहते हैं जिस से जाना जाय कि काम अभी थोड़े ही समय
पहिले हुआ है, जैसे-खाया है, मारा है, पढ़ाया है, इत्यादि ॥ (५) सन्दिग्धमूत उसे कहते है जिस से पहिले हो चुके हुए कार्य में सन्देह पाया
जावे, जैसे-खाया होगा, मारा होगा ॥ • (६) हेतुहेतुमद्भूत उसे कहते हैं जिसमें कार्य और कारण दोनों भूत काल में पाये
जावें, अर्थात् कारण क्रिया के न होने से कार्य क्रिया का न होना बतलाया जावे,
जैसे-यदि वह आता तो मैं कहता, यदि सुवृष्टि होती तो सुभिक्ष होता, इत्यादि । २- भविष्यत् काल उसे कहते हैं जिसका आरंभ न हुआ हो अर्थात् होनेवाली क्रिया को
भविष्यत् कहते है. इसके दो भेद हैं-सामान्यभविष्यत् और सम्भाव्यभविष्यत् ॥ (१) सामान्यमविष्यत् उसे कहते है जिस के होने का समय निश्चित न हो, जैसे
मैं जाऊंगा, मै खाऊंगा, इत्यादि । (२) सम्भाव्यमविष्यत् उसे कहते है जिसमें भविष्यत् काल और किसी बात की ___इच्छा पाई जावे, जैसे—खाऊं, मारे, आवे, इत्यादि । ३- वर्तमानकालं उसे कहते है जिस का आरम्भ तो हो चुका हो परन्तु समाप्ति न हुई
हो, इस के दो भेद है-सामान्यवर्तमान और सन्दिग्धवर्तमान ॥
(१) सामान्यवर्तमान उसे कहते है जहां कर्ता क्रिया को उसी समय कर रहा हो, जैसे, खोता है, मारता है, पढ़ता है, इत्यादि । (२) सन्दिग्ध वर्तमान उसे कहते है जिस में प्रारंभ हुए काम में सन्देह पाया जावे,
जैसे-खाता होगा, पढ़ता होगा, इत्यादि । 8- इनके सिवाय क्रिया के तीन भेद और माने गये हैं-पूर्वकालिका क्रिया, विधिक्रिया
और सम्भावनार्थ क्रिया ॥ (१) पूर्वकालिका क्रिया से लिंग, वचन और पुरुष का बोध नहीं होता किन्तु उस का
काल दूसरी क्रिया से बोषित होता है, जैसे-पढ़कर जाऊंगा, खाकर गया, इत्यादि ।