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________________ १५८ जैनसम्प्रदायशिक्षा || हवा के बिगड़ जाने से उन का प्राणान्त होगया, इसी प्रकार से अखच्छ हवा के द्वारा अनेक स्थानों में अनेक दुर्घटनायें हो चुकी है, इस के अतिरिक्त हवा के विकृत होने से अर्थात् स्वच्छ और ताजी हवा के न मिलने से बहुत से मनुष्य यावज्जीवन निर्वल और बीमार रहते हैं, इस लिये मनुष्यमात्र को उचित है कि - हवा के बिगाड़नेवाले कारणों को जान कर उन से बचाव रख कर सदा स्वच्छ हवा का ही सेवन करे जिस से आरोग्यता में अन्तर न पड़ने पावे. हवा को बिगाड़ने वाले मुख्य कारण ये हैं: - ! श्वासोच्छ्रास के द्वारा भीतरी भाग को साफ १ - श्वास के मार्ग से निकलने वाली अशुद्ध हवा स्वच्छ हवा को बिगाड़ती है, देखो ! हम सब लोग सदा श्वास लेते हैं अर्थात् नासिका के द्वारा स्वच्छ वायु को खीच कर भीतर ले जाते और भीतर की विकृत वायु को बाहर निकालते है, उसी निकली हुई विकृत वायु के संयोग से बाहर की स्वच्छ हवा बिगड़ जाती है और वही बिगड़ी हुई हवा जब श्वास के द्वारा भीतर जाती है तब हानिकारक होती है अर्थात् आरोग्यता को नष्ट करती है, यद्यपि मनुष्य अपनी आरोग्यता को स्थिर रखने के लिये प्रतिदिन शरीर की सफाई आदि करते है- अर्थात् रोज़ नहाते है और मुख तथा हाथ पैर आदि अंगों को खूब मल मल कर धोते हैं, परन्तु शरीर के भीतर की मलीनता का कुछ भी विचार नही करते हैं, यह अत्यन्त शोक का विषय है, देखो जो हवा हम लोग अपने मीतर ले जाते है वह हवा शरीर के करके मलीनता को बाहर ले जाती है अर्थात् श्वास के मार्ग से हवा अपने साथ तीन वस्तुओं को बाहर ले जाती है, वे तीनों वस्तुयें ये है -१ -कावनिक एसिड ग्यॅस, २-हवामें मिला हुआ पानी और तीसरा दुर्गन्धयुक्त मैल, इन में से जो पहिली वस्तु (कार्बोनिक एसिड ग्यस ) है वह स्वच्छ हवा में बहुत ही थोड़े परिमाण में होती है, परन्तु जिस हवा को हम अपने श्वास के मार्ग से मुँह में से बाहर निकालते है उस में वह ज़हरीली हवा सौगुणा विशेष परिमाण में होती है परन्तु वह सूक्ष्म होने से दीखती नहीं है, किन्तु जैसे - अग्नि में से धुंआ निकलता जाता है उसी प्रकार से हम सब भी उस को अपने में से बाहर निकालते जाते है तथा जैसे- एक सँकड़ी कोठरी में जलता हुआ चूल्हा रख दिया जावे तो वह कोठरी शीघ्र ही धुंए से व्याप्त हो जायगी और उस में स्वच्छ हवा का प्रवेश न हो सकेगा, इसी प्रकार यदि कोई किसी सॅकड़ी कोठरी के भीतर सोवे तो उस के मुँह में से निकली हुई अखच्छ बाहर निकली हुई १- इसी लिये योगविद्या के तथा खरोदय ज्ञान के बेसा पुरुष इसी श्वास के द्वारा कोई २ नेती, धोती और वस्ति आदि क्रियाओं को करते हैं, किन्तु जिन को पूरा ज्ञान नहीं हुआ है-वे कभी २ इस क्रिया से हानि भी उठाते हैं, परन्तु जिन को पूरा ज्ञान होगया है वे तो खासके द्वारा ही सब प्रकार के रोगों को भी मिटा देते हैं ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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