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________________ जैन तीर्थंकरोंका शासनभेद चारित्रोपहितं त्रयोदशतयं पूर्वं न दिष्ट परैराचारं परमेष्ठिनो जिनपतेर्वोरान्नमामो वयम् ॥७॥ ७३ इसमें कायादि तीन गुतियों, ईर्यादि पंच समितियों और अहिंसादि पंच महाव्रत के रूपमें त्रयोदश प्रकारके चारित्रको 'चारित्राचार' प्रतिपादन करते हुए उसे नमस्कार किया है और साथ ही यह बतलाया है कि 'यह तेरह प्रकारका चारित्र महावीर जिनेन्द्रसे पहले के दूसरे तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट नहीं हुआ है' — अर्थात्, इस चारित्रका उपदेश महावीर भगवान्ने दिया है, और इसलिये यह उन्हींका खास शासन है । यहाँ 'वीरात् पूर्वं न दिष्टं परैः' शब्दों परसे, यद्यपि, यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि महावीर भगवान्से पहलेके किसी भी तीर्थंकरने — ऋषभदेवने भी इस तेरह प्रकारके चारित्रका उपदेश नहीं दिया है, परन्तु टीकाकार प्रभाचन्द्राचार्यने 'परैः' पदके वाच्यको भगवान् 'अजित' तक ही सीमित किया है-- ऋषभदेव तक नही अर्थात्, यह सुझाया है किपार्श्वनाथ से लेकर अजितनाथपर्यंत पहनेके बाईस तीर्थकरोंने इस तरह प्रकारके चारित्रका उपदेश नहीं दिया है--उनके उपदेशका विषय एक प्रकारका चारित्र ( सामायिक) ही रहा है- यह तेरह प्रकारका चारित्र श्रीवर्धमान महावीर और आदिनाथ (ऋषभदेव ) द्वारा उपदेशित हुआ है। जैसा कि आपकी टीकाके निम्न अंश प्रकट है: -- 66 परैः अन्यतीर्थंकरैः । कस्मात्परैः ? वीरादन्यतीर्थंकरात् । किंविशिष्टात् ? जिनपतेः। परैरजिनादिभिर्जितनाथैख दशभेदभिन्नं चारित्रं न कथितं सर्वसावद्यविरतिलक्षरणमेकं चारित्र तैर्विनिदिष्ट तत्कालीन शिष्याणां ऋजुवक्रजडमतित्वाभावात् । वर्धमानस्वामिना तु वक्रजडमतिभव्याशयवशात् प्रादिदेवेन तु ऋजुमतिविनेयवशात् त्रयोदशविधं निर्दिष्ट ग्राचारं नमामो वयम् ।" संभव है कि 'परैः' पदकी इस सीमाके निर्धारित करनेका उद्देश्य मूलाचारके साथ पूज्यपादके इस कथनकी संगतिको ठीक विठलाना रहा हो । परन्तु वास्तव में यदि इस सीमाको न भी निर्धारित किया जाय और यह मान लिया जाय कि ऋषभदेवने भी इस त्रयोदशविधरूपमे चारित्रका उपदेश नहीं दिया है। तो भी उसका मूलाचार के साथ कोई विरोध नही आता है । क्योंकि यह हो सकता है कि ऋषभदेवने पंचमहाव्रतोंका तो उपदेश दिया हो — उनका छेदोप -
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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