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________________ .. गंधस्ति महामाज्यको खोन 277 सका, और जिसका विषय उमास्वातिके तस्वााधिगमसूत्रके तीसरे अध्यायसे सम्बन्ध रखता है। इस ग्रंथके प्रारंभमें नीचे लिखा वाक्य मंगलाचरणके तौर पर मोटे अक्षरोंमें दिया हुआ है "तत्वार्थव्याख्यानपएणवतिसहस्रगन्धहस्तिमहाभाष्यविधायत (क) देवागमकवीश्वरस्याद्वादविद्याधिपतिसमन्तभद्रान्वयंपेनुगाण्डेयलक्ष्मीसेनाचार्यर दिव्यश्रीपादपद्मगलिगे नमोस्तु / " ___ इस वाक्यमें 'पेनुगोण्डे के रहनेवाले लक्ष्मीसेन * प्राचार्य के चरणकमलोंको नमस्कार किया गया है और साथ ही यह बलाया गया है कि वे उन समन्तभद्राचार्यके वंशमें हुए हैं जिन्होंने तत्त्वार्थके व्याख्यानस्वरूप 66 हजार ग्रंथपरिमारणको लिए हुए गंधहस्ति नामक महाभाष्यकी रचना की है और जो 'देवागम' के कवीश्वर तथा स्याद्वादविद्याके अधीश्वर ( अधिपति ) थे।। यहाँ समन्तभद्रके जो तीन विशेषण दिये गये हैं उनमेमे पहले दो विशेषण प्राय: वे ही है जो 'विक्रान्तकौरव' नाटक और 'जिनेन्द्रिकल्यारणाभ्युदय' के उक्त पद्यमें खासकर उसके पाठान्तरित रूपमें--पाये जाते है। विशेषता सिर्फ इतनी है कि इसमें * तन्वार्थमूत्रव्याख्यान की जगह 'तत्त्वार्थव्याख्यान' और 'गंधहस्ति' की जगह 'गंधहस्तिमहाभाष्य'ऐमा स्पष्टोल्लेख किया है / साथही, गंधहस्तिमहाभाष्यका परिमारण भी 66 हजार दिया है,जो उसके प्रचलित परिमारण (चौरासी हजार ) से 12 हजार अधिक है / * लक्ष्मीसेनाचार्य के एक शिष्य मल्लिषेणदेवकी निपद्याका उल्लेख श्रवणबेल्गोलके 168 वें शिलालेखमें पाया जाता है और वह शिलालेख ई० सन् 1400 के करीबका बतलाया गया है / संभव है कि इन्हीं लक्ष्मीसेनके शिष्यकी निषद्याका वह उल्लेख हो और इससे लक्ष्मीमेन 14 वी शताब्दीके लगभगके विद्वान हों / लक्ष्मीसेन नामके दो विद्वानोंका और भी पता चला है परन्तु वे 16 वीं और 18 वीं शताब्दी के प्राचार्य / / विक्रमकी १२वीं शताब्दीके विद्वान् कवि गुणवर्मने भी अपने कन्ना- . भाषामें रचे गये पुष्पदन्तपुराणमें समन्तभद्रके गन्धहस्ति भाष्यका उल्लेख करते हुए उसकी पसंख्या 66 हजार दी है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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