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________________ भ० महावीर और उनका समय थी, उनके सन्तुष्ट करनेमें ही सारा समय चला जाता था और उन्हें पशुप्रोंकी बलियाँ तक चढ़ाई जाती थीं; धर्मके नाम पर सर्वत्र यज्ञ-यागादिक कर्म होते थे और उनमें असंख्य पशुओंको होमा जाता था-जीवित प्राणी धधकती हुई आगमें डाल दिये जाते थे और उनका स्वर्ग जाना बतलाकर अथवा 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' कहकर लोगोंको भुलावे में डाला जाता था और उन्हें ऐसे क्रूर कर्मोंके लिये उत्तेजित किया जाता था । साथ ही, बलि तथा यज्ञके बहाने लोग मांस खाते थे। इस तरह देशमें चहुँ ओर अन्याय-अत्याचारका साम्राज्य था-बड़ा ही बीभत्स तथा करुण दृश्य उपस्थित था--सत्य कुचला जाता था, धर्म अपमानित हो रहा था, पीड़ितोंकी आहोंके धुएंसे आकाश व्याप्त था और सर्वत्र असन्तोष ही असन्तोष फैला हुआ था। यह सब देखकर सज्जनोंका हृदय बलमला उठा था, धार्मिकोंको रात दिन चन नहीं पड़ता था और पीडित व्यक्ति अत्याचारों से ऊबकर त्राहि त्राहि कर रहे थे। सबोंकी हृदय-तन्त्रियोंसे 'हो कोई अवतार नया' की एक ही ध्वनि निकल रही थी और सबोंकी दृष्टि एक ऐसे असाधारण महात्माकी अोर बगी हुई थी जो उन्हें हस्तावलम्बन देकर इस घोर विपत्ति से निकाले । ठीक इसी समय-माजसे कोई ढाई हजार वर्षसे भी पहले-प्राची दिशामें भगवान महावीर भास्करका उदय हुना, दिशाएं प्रसन्न हो उठीं, स्वास्थ्यकर मन्द-सुगन्ध पवन वहने लगा, सजन धर्मात्माओं तथा पीड़ितोंके मुखमंडल पर आशाकी रेखाएँ दीख पड़ी, उनके हृदयकमल खिल गये और उनकी नस-नाड़ियोंमें ऋतुराज ( वसत ) के आगमनकाल-जैसा नवरसका संचार होने लगा। महावीरका उद्धारकार्य महावीरने लोक-स्थितिका अनुभव किया, लोगोंकी अज्ञानता, स्वार्थपरता, उनके वहम, उनका अन्धविश्वास और उनके कुत्सित विचार एवं दुर्व्यवहारको देखकर उन्हें भारी दुःख तथा खेद हुमा । साथ ही, पीड़ितोंकी करुण पुकारको सुनकर उनके हृदयसे दयाका प्रखंड स्रोत बह निकला । उन्होंने लोकोदारका संकल्प किया; लोकोद्वारका सम्पूर्ण भार उठानेके लिये अपनी सामर्थ्यको तोला
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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