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________________ २०६ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश विद्या और वाणीको प्रशंसामें खुला गान किया है +। .. यहाँ तकके इस संपूर्ण परिचयसे यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है और इसमें जरा भी संदेह नहीं रहता कि समन्तभद्र एक बहुत ही बड़े महात्मा थे, समर्थ विद्वान् थे, प्रभावशाली प्राचार्य थे, महा मुनिराज थे, स्याद्वादविद्याके नायक थे, एकांत पक्षके निर्मूलक थे, अबाधितशक्ति थे, 'सातिशय योगी' थे, सातिशय वादी थे, सातिशय वाग्मी थे, श्रेष्ठकवि थे, उत्तम गमक थे, मद्गुरगोंकी मूर्ति थे, प्रशांत थे, गंभीर थे, भद्रप्रयोजन और मदुश्यके धारक थे, हितमितभाषी थे, लोकहितैपी थे, विश्वप्रेमी थे, परहितनिरत थे, मुनिजनोमे वंद्य थे, बड़े बड़े प्राचार्यों तथा विद्वानोंसे स्तुत्य थे और जैन शासनके अनुपम द्योतक थे, प्रभावक थे और प्रसारक थे। ऐसे मातिशय पूज्य महामान्य और मदा स्मरगा रखने योग्य भगवान् समंतभद्र स्वामीके विषयमें श्रीशिवकोटि प्राचार्यने, अपनी 'रत्नमाला' में जो यह भावना की है कि वे निप्पार स्वामी ममतभद्र मे हृदय में रात दिन तिष्टी जो जिनराजके ऊँचे उठते हुए शासनममुद्रको बढाने के लिये चंद्रमा है' वह बहुत ही युक्तियुक्त है और मुझे बड़ी प्यारी मालूम देती है। निःसन्देह स्वामी ममतभद्र इसी योग्य है कि उन्हे निरन्तर अपने हृदयमंदिरमे विगममान किया जाय, और इम लिये मैं शिवकोटि प्राचार्यकी दम भावनाका हृदय में अभिनंदन और अनुमोदन करते हुए, उसे यहां पर उद्धृत करता हूं स्वामी समन्तभद्रा मेऽहर्निशं मानमेऽनघः । निष्ठताजिनराजोदयच्छासनाम्बुधिचंद्रमाः ॥५॥ + श्वेताम्बर माधु मुनिश्री जिनविजयजी कुछ थोड़े प्रशंमा - वाक्योक आधार पर ही लिखते हैं-"इतना गौरव शायद ही अन्य किमी प्राचायंका किया गया हो।" जनमाहित्यमंशोधक १ । ___ श्रीविद्यानंदाचार्यने भी अष्टमहस्रीम कई बार इस विशेषणा के साथ आपका उल्लेख किया है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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