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________________ १२ जैनमाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पुरुषके वचनोंकी उपमा दी है, यह सब उनके निम्न वाक्यसे प्रकट है- . जीवसिद्धि-विधायीह कृत-युक्त्यनुशासन । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विज़म्भते ॥ ३०॥ इस पद्यमें जीवसिद्धिका विधान करनेवाले और युक्तियोंद्रारा अथवा युक्तियोंका अनुशासन करनेवाले समंतभद्र के वचनोंकी बाबत यह कहा गया है कि वे वीर भगवानके वचनोंकी तरह प्रकाशमान है, अर्थात् अन्तिम तीर्थकर श्रीमहावीर भगवानके वचनोंके समकक्ष हैं और प्रभावादिकमें भी उन्हीके तुल्य हैं। जिनसेनाचार्यका यह कथन समंत भद्रके 'जीवसिद्धि' और 'युक्त्यनुशासन' नामक दो ग्रन्थोंके उल्लेखको लिये हुए है, और इसमे उन ग्रन्थों (प्रवचनों) का महत्त्व स्वतः स्पष्ट हो जाता है । प्रमाण-नय-निर्णीत-वस्तुतत्त्वमबाधितं । जीयात्समंतभद्रस्य स्तोत्रं युक्त्यनुशामनं ।। -युक्त्यनुशासनटीका । इस पद्यमें श्रीविद्यानंदचाय, ममतभद्रके 'युक्न्यनुगामन' म्तोत्रका जयघोष करते हुए, उसे 'अबाधित' विशेषग देते है और माथ ही यह भूचित करते है कि उसमें प्रमाण-नयके द्वारा वस्नुतत्त्वका निर्णय किया गया है । * स्वामिनश्चरितं तम्य कस्य नो विम्मयावहं । देवागमेन सर्वज्ञा येनाद्यापि प्रदर्श्वन । त्यागी स एव योगीन्द्रो येनाक्षय्यमुखावहः । अर्थिने भव्यसार्थाय दियो रत्नकरंडकः ।। --पाइवनाथरिन । * माणिकचंद्रग्रन्थमालामें प्रकाशित 'पाश्र्वनाथरिन' में इन दोनो पचोंके मध्यमें नीचे लिम्वा एक पद्य और भी दिया है, जिसके द्वारा वादिराजने ममंतभद्रको अपना हित चाहनेवालोंके द्वाग वंदनीय और अचिन्त्य-महिमावाला देव प्रतिपादन किया है। माथ ही, यह लिखकर कि उनके द्वारा शब्द भने प्रकार सिद्ध होते हैं, उनके किमी व्याकरण ग्रन्थका उल्लेख किया है अचिन्त्यमहिमा देव: मोऽभिवंद्यो हितगिरणा । शब्दाश्च येन सिद्धयन्ति मात्वं प्रतिभिताः ॥
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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