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________________ -१६८ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश समन्तभद्र यतिके सामने प्राते थे तो मधुरभाषी बन जाते थे और उन्हें 'पाहि पाहि ' - रक्षा करो (रक्षा करो, अथवा श्राप ही हमारे रक्षक है; ऐसे सुन्दर मृदुलवचन ही कहते बनता था । और दूसरा पद्य यह बतलाता है कि जब महावादी समन्तभद्र ( सभास्थान प्रादिमें) प्राते थे तो कुवादिजन नीचा मुख करके अँगूठोंसे पृथ्वी कुरेदने लगते थे--- अर्थात उन लोगों पर प्रतिवादियों पर - समन्तभद्रका इतना प्रभाव छा जाता था कि वे उन्हें देखते ही विषण्णवदन हो जाते और किंकर्तव्यविमूढ बन जाते थे । (१२) अजित सेनाचार्य के 'अलंकार - चिन्तामरिण' ग्रन्थमें और कवि हस्तिमल्लके 'विक्रान्तकौरव' नाटककी प्रशस्तिमं एक पद्य निम्न प्रकारसे पाया जाता है- ● अवटुतटमटति झटिति स्फुटपटुवाचाटधूर्जटेर्जिह्वा । वादिनि समन्तभद्रे स्थितवति सति का कथान्येषाम् ।। इसमें यह बतलाया है कि वादी समन्तभद्रकी उपस्थितिमें, चतुराईके साथ स्पष्ट शीघ्र और बहुत बोलने वाले धूर्जटिकी जिह्वा ही जब शीघ्र अपने त्रिलमें घुस जाती है-उसे कुछ बोल नही आना- - तो फिर दूसरे विद्वानोंकी तो कथा ही क्या है ? उनका ग्रस्तित्व तो समन्तभद्र के सामने कुछ भी महत्त्व नही • रखता । इस पद्य भी समंतभद्रके सामने प्रतिवादियोंकी क्या हालत होती थी उसका कुछ बोध होता है । कितने ही विद्वानोने इस पद्यमे 'धूर्जटि' को 'महादेव' अथवा 'शिव' का पर्याय नाम समझा है और इसलिये अपने अनुवादोमे उन्होंने 'घूजीट' की जगह महादेव तथा शिव नामोंका ही प्रयोग किया है । परन्तु ऐसा नहीं है । भले ही यह नाम, यहां पर किसी व्यक्ति विशेषका पर्यायनाम हो, परन्तु वह महादेव नामके रुद्र अथवा शिव नामके देवताका पर्याय नाम नहीं है । महादेव न तो * जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' ग्रंथकी प्रशस्ति में भी, जो शक म०१२०१ में बनकर समाप्त हुआ है, यह पद्य पाया जाता है, सिर्फ 'धूर्जटेजिह्वा के स्थान में 'धूर्जटेरपि जिल्ला' यह पाठान्तर कुछ प्रतियोंमें देखा जाता है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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