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________________ १६४ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश गमक थे उन सब पर आपके यशकी छाप पड़ी हुई थी -प्रापका यश नष्टामरिणके तुल्य सर्वोपरि था और वह बादको भी बड़े बड़े विद्वानों तथा मान श्राचार्योंके द्वारा शिरोधार्य किया गया है। जैसा कि, आजसे ग्यारह सौ वर्ष पहले विद्वान्, भगवज्जिनसेनाचार्य के निम्न वाक्यसे प्रकट हैं कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि । यशः सामन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥ ४४ ॥ -ग्रादिपुराण | भगवान् समंतभद्रके इन वादित्व और कवित्वादि गुणोंकी लोकमे कितनी धाक थी, विद्वानोंके हृदय पर इनका कितना मिक्का जमा हुआ था और वास्तव में कितने अधिक महत्त्वको लिये हुए थे. इन सब बातोंका कुछ अनुभव करानेके लिये नीचे कुछ प्रमाणवाक्योंका उल्लेख किया जाता है- विज्ञान ( १ ) यशोधरचरितके 'कर्ना और विक्रमकी ११ वी महाकवि वादिराजरि, समतभद्रको 'उत्कृटकाव्य- माणिक्योंका रोग (पर्वत) सूचित करते हैं और साथ ही यह भावना करते हैं कि हम कि समूहको प्रदान करने वाले होवे - श्रीमत्समंतभद्राद्याः काव्यमाणिक्यरोहणाः । सन्तु नः संततोत्कृष्टाः सूक्तिरत्नोत्करप्रदाः || ( २ ) 'ज्ञानारणंव' ग्रंथके रचयिता योगी श्रीशुभचंद्राचार्य जी विक्रमी प्रायः ११वी के विद्वान है, समंतभद्रको 'कवीन्द्रभास्वान' विशेषावे गाव स्मरण करते हुए लिखते हैं कि जहां आप जैसे कवीन्द्र-सूर्याक निर्मली किरणों स्फुरायमान हो रही है वहा वे लोग खद्यान या जुगनूकी तरह हमको ही प्राप्त होते हैं जो थोडेसे ज्ञानको पाकर उद्धत है -कविता करने लगते है । ॐ 'गमकः कृतिभेदक:'- जी दूसरे विद्वानको कृतियो को मनवाला उनकी तहत पहुँचनेवाला हो और दूसरोंको उनका ममं नया रहस्य समझाने में प्रवीण हो उसे 'गमक' कहते हैं। निश्चायक, प्रत्ययजनक र संशयछेदी भी उसीके नामान्तर है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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