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________________ १६२ जैन साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश तौरमे निष्णात थे । प्राय: सभी विषयों और सारगर्भित उक्ति अच्छे अच्छे मदोन्मत्तोंको नतमस्तक बनाने में समर्थ थी । आप सदैव ध्यानाऽध्ययनमें मग्न और दूसरोंके अज्ञानभावको दूर करके उन्हें सन्मार्गकी ओर लगाने तथा आत्मोन्नतिके पथ पर अग्रसर करनेके लिये सावधान रहते थे । जैनधर्म और जैनसिद्धान्तोंके मर्मज्ञ होनेके सिवाय याप तर्क, व्याकरण, छंद, अलंकार और काव्य- कोषादि ग्रंथोंमें पूरी sarvat matter प्रतिभाने नात्कालिक ज्ञान और विज्ञानके पर अपना अधिकार जमा लिया था । यद्यपि आप संस्कृत, प्राकृत, कनडी और तामिल दि कई भाषाओं के पारंगत विद्वान् थे, फिर भी संस्कृत भाषा पर आपका विशेष अनुराग तथा प्रेम था और उसमें श्रापने जो असाधारण योग्यता प्राप्त की थी वह विद्वानोंसे छिपी नहीं है। अकेली 'स्तुतिविद्या' ही आपके द्वितीय शब्दाधिपत्यको अथवा शब्दोंपर आपके एकाधिपत्यको निरी है । जितनी कृतियाँ अब तक उपलब्ध हुई है वे सब संस्कृतमे ही है। परंतु द किसी को यह न समझ लेना चाहिए कि दूसरी भाषाओं में आपने धरवतान की होगी, की जरूर है; क्योंकि कनड़ी भाषाके प्राचीन कवियों मभी अपने कनड़ी काव्यों, उत्कृष्ट कविके रूपमें आपकी भूरि भूरि प्रशंसा की है। तामिल देशमें तो आप उत्पन्न ही हुए थे, उसमे नामिल भाषा ग्रापकी मातृभाषा थी । उसमें ग्रन्थरचनाका होना स्वाभाविक ही है। फिर भी मन भायाके साहित्यपर ग्रापकी टल छाप थी । दक्षिण भारतमें उच्च कोटिकेन ज्ञान प्रोत्तरे जन, प्रोत्साहन और प्रसारण देनेवालोंमें आपका नाम स्वास नोरगे लिया जाता है। आपके समयमे संस्कृत माहित्यके इतिहासमें एक खास युगका प्रारंभ होता है; और इमीमे संस्कृत साहित्यके इतिहास मे ग्रापका नाम अमर है। , * देखो, 'हिस्टरी ग्राफ़ कनडीज़ लिटरेचर' तथा 'कर्णाटकविरि । + मिस्टर एस० एस० रामस्वामी प्राय्यंगर, एम० ए० भी अपनी स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनिज्म' नामकी पुस्तक में, बम्बई गजेटियर, जिल्द पहली भाग दूसरा, पृष्ठ ४०६ के आधारपर लिखते हैं कि 'दक्षिण भारतमें समंतभद्रका उदय, न सिर्फ दिगम्बर सम्प्रदायके इतिहास में ही बल्कि, संस्कृत साहित्यके इतिहासमें भी एक खास युगको अंकित करता है ।' यथा
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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