SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ferent एक सटिप्पण प्रति परमेतावचतुरैः कर्तव्यं शृणुत वच्मि सविवेकः । शुद्धो योस्य विधाता स दूषणीयो न केनापि ||४|| टिप्प० - "एवं चाकर्ण्य वाचको मास्वातिर्दिगम्बरो निह्नव इति केचिन्मात्रदन्नदः शिक्षार्थं 'परमेतावश्चतुरैरिति' पद्यं ब्रमहे - शुद्धः सत्यः प्रथम इति यावद्यः कोप्यस्य ग्रंथस्य निर्माता स तु केनापि प्रकारेण न निंदनीय एतावचतुरैर्विधेयमिति ।" १२१ भावार्थ - ऊपर की बातको सुनकर 'वाचक उमास्वाति निश्चयसे दिगम्बर निह्नव है ऐसा कोई न कहे, इस बातकी शिक्षाके लिये हम 'परमेतावच्चतुरैः' इत्यादि पद्य कहते हैं, जिसका यह आशय है कि 'चतुरजनों को इतना कर्तव्य पालन जरूर करना चाहिये कि जिससे इस तत्त्वार्थशास्त्रका जो कोई शुद्ध विधाता — प्राद्यनिर्माता है वह किसी प्रकारसे दूपणीय - निन्दनीय - न ठहरे । " यः कुन्दकुन्दनामा नामांतरितो निरुच्यते कैश्चित् । ज्ञेयोऽन्य एव सोऽस्मात्स्यप्रमुमास्वातिरिति विदितात् ||५|| टिप्पर- कुन्दकुन्द एवैतत्प्रथमकर्तेति संशयापोहाय स्पष्टं ज्ञापयामः 'यः कुन्दकुन्दनामेत्यादि । अयं च परतीर्थिकैः कुन्दकुन्द इडाचार्यः पद्मनदी उमास्वातिरित्यादिनामांताराणि कल्पयित्वा पश्यत संSस्मात्प्रकरकतु रुमास्वातिरित्येव प्रसिद्धनाम्नः सकाशादन्य एवं ज्ञेयः किं पुनः पुनर्वेदयामः ।" भावार्थ- - तब कुन्दकुन्द ही इस तत्त्वार्थशास्त्रके प्रथम कर्ता है, इस संशयको दूर करनेके लिये हम 'यः कुन्दनामेत्यादि' पद्यके द्वारा स्पष्ट बतलाते हैं। कि-- पर तीर्थिकों (!) के द्वारा जो कुन्दकुन्दको कुन्दकुन्द, इडाचार्य (?) पद्मनन्दी उमास्वाति इत्यादि नामान्तरोंकी कल्पना करके उमास्वाति कहा जाता है ॐ जहाँ तक मुझे दिगम्बर जैनसाहित्यका परिचय है उसमे कुन्दकुन्दाचार्यका दूसरा नाम उमास्वाति है ऐसा कहीं भी उपलब्ध नहीं होता । कुन्दकुन्दके जो पाँच नाम कहे जाते हैं उनमें मूल नाम पद्मनन्दी तथा प्रसिद्ध नाम कुन्दकुन्दको छोड़कर शेष तीन नाम एलाचार्य, वक्रप्रीव और गृद्धपिच्छाचार्य
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy