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________________ मुनि गज- सुकुमार परायण 'सोमिल' नामक एक ब्राह्मण की 'सोना' नाम की परम सुशीला और लावण्यमयी कन्या से उन का सम्बन्ध निश्चित हुआ । भव-भय-हांरी भगवान्, गाँव-गाँव में विचरण करते हुए, दयाधर्म का पवित्र सन्देश सुनाने के लिए, एक दिन उसी द्वारिका मैं था पहुँचे । नगरी के बाहर एक उद्यान में या कर आप विराजे | बरसाती नदियों की बाढ़ की भाँति, जनता आप के पावन दर्शनों के लिए, चारों ओर से उमड़ पड़ी । गज-सुकुमार भी एक दिन, भगवान् के उपदेश में जा सम्मिलित हुए । उस दिन, भगवान् ने प्रतिपादन किया, कि " संसार के सारे सुख पानी के बताशे की भाँति क्षण-भंगुर हैं; बालू की दीवाल के - सर्वंश चंचल हैं। इसके विपरीत, वैराग्य ही एक ऐसी वस्तु है, जिस में भय और भव-रोगों के लिए कोई गुंजायश नहीं । " प्रभु की इस बोध- प्रद वाणी से कुमार के कान खड़े हो गये । उनके विचारों की दिशा बदल गई। वैराग्य ने कुमार के हृदय में अपना अचल अखाड़ा या जमाया । उपदेश के अन्त में, उन्होंने प्रभु से प्रार्थना की, कि " प्रभु भव-भय- हारी हैं। मुझे भी भव-रोग से मुक्त कीजिए। दारुण भव- रोगों ने मुझे जन्मजन्मान्तरों से सन्तापित कर रक्खा है। अब मैं अपने मातापिता की आज्ञा प्राप्त कर, प्रभु की पावन शरण में, अपने जीवन के शेष समय को बिताना चाहता हूँ | अतः दीक्षित कर, प्रभु, दास को अपनायें | प्रभु ने तब कुमार को कहा, "जिस प्रकार भी तुम्हें सुख हो, करो। " " व कुमार घर पर श्राप । माता-पिता से दीक्षा के लिए श्राज्ञा माँगी। पहले तो ग्रह अचानक बात सुन कर, बड़े [ ? ] ·
SR No.010049
Book TitleJain Jagat ke Ujjwal Tare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPyarchand Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1937
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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