SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन गुप्त राजाओं के सिक्कों के ही समान कुछ चाँदी के सिक्के मिले हैं, जिन पर राजा के मस्तक को छाप है और संवत् ५२ का अंक है। दूसरी तरफ विजितावनिरवनिपति श्री तोरमाण देव जयति' लिखा रहता है। यह तोरमाण वही है जिसका परिचय हम उसके दो शिलालेखों ले पा चुके हैं। जिस संवत् का यहाँ उल्लेख है वह अनुमानतः हूण संवत् है, जिसका कि प्रारम्भ सन ४४८ ईसवी के लगभग माना जाता है। इस राजा के पुत्र मिहिरकुल के भी कुछ सिक्के मिलते हैं, जिन पर राजा की मूर्ति के साथ-साथ त्रिशूल और बैल भी बने रहते हैं। इससे इसका शैव-मतानुयायी होना सिद्ध होता है। कुछ चाँदी और ताँबे के सिक्के भी मिले हैं, जिनपर एक तरफ 'विजितावनिरवनिपति श्री शीलादित्य दिवं जयति । और दूसरी तरफ इन्हीं पदवियों के साथ-साथ शीलादित्य के स्थान में 'श्रीहर्ष' लिखा रहता है। 'स'के आगे १ ले ३३ तक के भिन्न-भिन्न अंक भी उनपर पाये जाते हैं। इससे हर्ष' का ही दूसरा नाम शीलादित्य होना सिद्ध होता है। हर्ष ने अपने नाम का एक संवत् भी चलाया था, जिसका प्रारम्भ ( काश्मीरी पञ्चांगों के अनुसार) सन् ६०६ ईसवी से माना जाता है । संयुक्त प्रान्त और नेपाल में लगभग ३०० वर्ष तक इसके प्रचलित रहने के प्रमाण भी मिलते हैं। अतः इसमें सन्देह नहीं कि सिक्कों पर यही हर्ष-संवत् उद्धृत किया गया है।
SR No.010047
Book TitleJain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy