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________________ $૪ ] हमारा इतिहास हासिक कागज पत्र, बखरे आदि संग्रह करके प्रकाशित की गई हैं, हिन्दी भाषी प्रान्तों में वैसा कोई उद्योग अभीतक नहीं हुआ है। बुन्देलखण्ड मालवा और राजपुताना की देशी रियासतों में इस तरह की प्रचुर सामग्री राजकीय पुस्तकालयों में पड़ी है, जो मध्यकालीन इतिहास के लिये अत्यन्त उपयोगी हो सकती है । अनेक देशी राज्यों, जैसे उदयपुर आदि में पुरातत्त्व विभागका संगठन न होनेसे वहां के महत्वपूर्ण इतिहासोपयोगी प्राचीन स्मारक विध्वंस हो रहे हैं। इसी मध्यप्रदेश में अनेक छोटी मोटी रियासतें और जागीरें हैं जिनका इतिहास यद्यपि कुछ कुछ अंग्रेजी गजेटियरों में संकलित किया गया है, पर सजीव और लोकप्रिय रीतिसे हिन्दी में बहुत ही कम लिखा गया है । हमें ऐसी लोक- रुचि ऐतिहासिक बातों में उत्पन्न करने की आवश्यकता है कि जिससे जहां कहीं भी कोई छोटे मोटे ऐतिहासिक स्मारक पाये जावें उनका विध्वंस न होकर रक्षण हो सके ! यदि ध्यान दिया जावे तो लोक कथाओं में, ग्रास्य गीतों में, पुरानी चिट्ठी पत्रियों में व ग्रंथ - प्रशस्तियों में न जाने कितनी ऐतिहासिक सामग्री बिखरी हुई मिल सकती है । जैनियों के प्राचीन ग्रंथ-भंडारों में इस तरहकी बहुत सामग्री पाई जाती है। गुजरात में इस दिशा में बहुत कुछ कार्य हुआ है । देशी और विदेशी विद्वानोंद्वारा भारतीय इतिहास के सम्बन्ध में जो कुछ खोजें होती हैं वे प्रायः अंग्रेजी पाठकों को ही सुलभ होती हैं । आवश्यकता है कि उन सब खोजों का हिन्दी पाठकों को भी परिचय कराया जाय । अंग्रेजी में जो इतिहास के साधन, शिलालेख, ताम्रपत्रादि प्रकाशित हुए हैं वे भी संग्रह
SR No.010047
Book TitleJain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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