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________________ [ व ] aaपने का कोई (आकार) चिन्ह नहीं है जो तुम ने देखा हो, प्रत्यक्ष मिथ्या बोलते हो तथापि हम तुम से पूछते है -- एकदा हम ने फागण वदि चतुर्दशी को देखा कि तुम्हारे मतावलंबी स्त्री पुरुष सर्व ऐसे स्थान में गये थे जहां नीचे तो पाषाण का वाण ( स्त्री का भग) उस में एक पुरुष का खड़ा हुआ पुरुष चिन्ह डाला हुआ उस को सर्व जन दंडवत प्रणाम कर या धतूरे आदि पुष्प गंध से पूजा करते थे, कहिये ! इससे कोई अधिक निर्लज्ज नमता अन्यत्र नहीं होगी। ऐसी स्थापना की मानता करते हुए आपको किञ्चित् मी विचार नहीं होता होगा ? अब विचार पूर्वक वर्ताव करना बुद्धिमानों का कृत्य है, रागी और द्वेषी इन दोनों को सत्य भी असत्य भासता है, इस २ प्रकार के झूठे फंद अनेकानेक अपनी असत्य कल्पना को कोई छोड न देवे तव ज्ञान शून्य मनुष्य को स्वमत में थिर करने स्वार्थ सिद्धि करने के लिये ऐसी गप्प रच रखी है। यह तो जगत्प्रसिद्ध न्याय है कि संसार के बंधन में फंसे हुए काम, क्रोध, मोह मन को उद्धार करने के लिए राग द्वेष चर्जित यथार्थ मुक्ति मार्ग के दायक तरणतारण की पूजा उपासना करनी योग्य है । देखा कृष्णोवाच --- ज्ञानवैराग्य मे देहि स्थागवैराग्यदुर्लभम् (गीता) । लौकिकवाले कहते है कि जब भक्तजन में संकटापदा विशेष देखते है तब पृथ्वीका भार उतारने के अर्थ भगवान् अवतार लेते है । जो भगवान् शाश्वत और अनंत शक्तिवंत हैं जब वे माता के उदर में महाअशुचि स्थान अवतरते है तब तो उनका जन्म मरण होने से शाश्वतत्व नष्ट होता है और गोलोक भी उस समय शून्य होजाता होगा क्योंकि भगवान् तो मृत्यु लोक में पधार जाते है फिर ऐसा मानने से उस भगवान् में अनंत शक्ति का भी लेश नहीं रह सकता क्योंकि अनंत शक्ति वाला परमेश्वर स्वस्थान स्थित भक्त जन का क्या संकट काटने में समर्थ नहीं था ? सो स्त्री के गर्भ में अवतार धारना पड़ा, और युद्ध संग्राम करने रूप महा विपदा उठाई । विद्यमान समय में अपने भक्त जनों के शायद संकट लौकिक में धन प्रमुख उन भक्तों के कर्मानुसार देकर काटा होगा और अपनी आज्ञा नहीं मानने बालों को प्राणघातादि कर्मानुसार दंड भी दिया होगा क्योंकि वर्तमान में राजादिकों का हम ऐसा स्वरूप देख रहे है, लेकिन परोक्ष में भक्त जन का संकट, काटना प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध नहीं होता । 1 आप लोग कहते हैं कि भगवान् मत्स्य, कच्छ, वाराह आदि २४ अवतार
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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