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________________ श्रीजैन दिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय ) । बना दिये, रास्ते के चारों गिरद बहुत कीड़े यदि जीव हर जगे बना दिये, तब राजा जीव दया के भाव से कमल जैसे सुकुमार नंगे पांवों से उन कंटक जैसे कंकरों पर ही चल रहा है, पांवों में से रुधिर की शिराय चल रही है, तो भी जीवाकुल भूमि पर नहीं गया, तब देवता ने नाटक और गायन प्रारम्भ करा, तो भी वो राजा चोभायमान नहीं हुआ, तब दोनों देवता सिद्ध पुत्रों का रूप करके कहा, हे राजां, अभी तेरी आयु बहुत है, भोग विलास करं, अंत अवस्था में दीक्षा लेना, तब राजा बोला, जो मेरी आयु लंबी है तो बहुत चारित्र धर्म पालूंगा, योवन में इंद्रियों को जीतना है, वही पूरा तप है, तब देवताओं ने बिचारा यह डिगने वाला नहीं है, तदनंतर वे दोनों देव सर्व से उत्कृष्ट यमदग्नि तापस के पास आये, जिसकी जटा बड़वृक्ष के बड़वाई की तरह पृथ्वी में संलग्न हो रही है, पाव के पास पृथ्वी में सर्पों की विधिया पड़ रही है, ऐसा तपेश्वरी देख परिक्षा. करने दोनों देवता चिड़ा चिड़ी का रूप रच कर यमदग्नि की दाढ़ी में घोसला बना के बैठ गये, पीछे चिड़ा चिड़ी से कहने लगा, मैं हिमवंत पर्वत लाऊंगा, तब चिड़ी कहने लगी, मैं तुझे कभी नहीं जाने दूंगी, क्योंकि तूं उहां जाकर और चिड़ी से आसक्त हो जायगा, पीछे मेरा क्या हाल होगा, तब चिड़ा कहने लगा, जो मैं पीछा नहीं आऊं तो मुझे गौ धांत का पाप लगे, तब चिड़ी कहती है, ऐसी शपथ मैं नहीं मानती, मैं कहूं सो शपथ करे तो जाने दूंगी, तब चिड़ा बोला कहदे, तब चिड़ी कहती है कि जो तूं किसी चिड़ी से यारी करे तो इस यमदग्नि को जो पाप है सो तुझ को लगे चिड़ा चिड़ी का ऐसा वचन सुन यमदग्नि क्रोधातुर हो चिड़ा चिड़ी दोनों को हाथों से पकड लिया और कहने लगा मैं सब यापों का नाश करने वाला दुष्कर तपकती हूं तो फिर ऐसा कौनसा पाप शेष रह गया जिससे तुम मुझे पापी बतलाते हो । तब चिड़ी कहती है, है ऋषि, तेरा सब तप निष्फल है, तुम्हारे शास्त्रों में लिखा है अपुत्रस्यगतिनस्ति स्वर्गनैवच २ याने पुत्र बिना गति नहीं है, तो जिसकी गति शुभं नहीं होय उससे अधिक पाप फिर कौन होगा, तब यमदग्नि चित में विचारने' लगा, हमारे शास्त्रों में यह बात लिखी तो हैं जहांतक खी और पुत्र नहीं E
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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