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________________ - प्राचीन वेद के बिगड़ने का इतिहास । मार डालना, या स्वयंबर से निकाल देना, ये वचन सब राजों ने मंतव्य करा, अब वो पंडित यथा यथा पुस्तक बांचता जाता है, तथा तथा मधुपिंगल अपने में अपलक्षण मान, लज्जा पात्र बन स्वयंवर से स्वतः निकल गया, तदनंतर सुलसा ने सगर को वर लिया, अब मधुपिंगल उस अपमान से दुःख गर्मित वैराग्य से बालतप कर के मरा, ६० सहस्र वर्षों की आयु वाला महाकाल नामा असुर तीसरी नरक तक नारकियों को दंड दाता परमाधार्मिक देवता हुआ, अवधि ज्ञान से पूर्व भव देखा, सगर का कपटादि सर्व घृतांत जान विचारने लगा, सगर को किसी तरह पापकर्मी बनाकर मारूं, नरक में आये वाद इस से पूरा बदला लूं, तब छिद्र देखने लगा, उस अवसर में उस ने पर्वत को देखा, तब वृद्ध ब्राह्मण का रूप कर के पर्वत को कहने लगा, हे पर्वत, तू ऐसा दुःखी क्यों, मैं तेरे पिता का मित्र. हूं, मेरा नाम शांडिल्य है, हम दोनों गौतम उपाध्याय पास पड़े थे, मैंने सुणा है कि नारद तथा और लोकों ने तुझे दुःखी करा है, अब मैं तेरा पद करूंगा, मंत्रों से लोकों को विमोहित करूंगा, अब पर्वत से मिल के लोकों को नरक में डालने वास्ते उस असुर ने व्याधि भूतादि ग्रस्त लोकों को करना शुरू करा है, पीछे जो लोक पर्वत के वचन जाल में फंस जाता उनों से हिंसक यज्ञ करा कर आरोग्य कर अपने मत में मिलाने लगा, आखर उस असुर ने राजा सगर की राणियों को, पुत्रों को रोगग्रसित करा, पर्वत ने सोमादि यज्ञ राजा से कराकर उनों को नीरोग करा। तद पीछे राजा पर्वत का भक्त बना महाकाल की प्रेरणा से पर्वत कहता है, हे राजा, स्वर्ग की कामना से इस मुजब कृत्य कर सौत्रामाण यज्ञ कर मध पान करने में दोष नहीं, गोसव । यज्ञ में अगम्य स्त्री (चांडाली) तथा माता, बहिन, बेटी आदि से विषय । सेवन करने में दोष नहीं, मातृमेध में माता का, पिट मेध में पिता का, है वध अन्तर्वेदी कुरुक्षेत्रादि में करे तो दोप नहीं, तथा काछवे की पीठ पर अग्नि स्थापन कर तर्पण करे, यदि कछुवा नहीं मिले तो शुद्ध ब्राह्मण की खोपरी पर भाग्न स्थापन कर होम करना, क्योंकि खोपरी भी कछुए : सदृश ही होती है यह वेदों की आज्ञा है इस में हिंसा नहीं है, वेदों में लिखा है
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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