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________________ २६ श्रीनैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय)। से सृष्टि रची है, कोई कहता है विष्णु, जलशायी ने ब्रह्मा को रच सृष्टि रची है, कोई कहता है देवी ने ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीनों को रचकर पश्चात् वह देवी सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती तीनों रूप रच कर तीनों की क्रम से स्त्री होकर के सृष्टि उत्पश्च करी, इत्यादि अनेक मन तो पुरायोक्न हैं । एक स्वामी वेद के अखर्वगर्वी बन के कह गये ईश्वर, पुरुष और स्त्रियों के तरुण जोड़े रचकर तिब्बत के मुल्क में पटक दिये उस से सृष्टि का प्रवाह शुरू हो गया, उस को २८ चौकड़ी शतयुगादि की बीती है इत्यादि अनेक कल्पना करते हैं क्योंकि प्राय: सर्व मत एक जैन धर्म बिना प्राक्षणों ने चलाये हैं, ब्राह्मण ही मतों के विश्वकर्मा हैं, लौकिक शास्त्र में मो कुछ है सो ब्राह्मणों के वास्ते ही है, ब्राह्मणों को लौकिक शास्त्र ने तार दिया, क्योंकि शास्त्र बनाने वालों के संतानादि खूब खाते, पीते, आनन्द करते हैं, इन ब्राह्मणों की उत्पत्ति तथा वेदों की उत्पत्ति जैसे भावश्यकादि शास्त्रों में लिखी है वह भव्य जीवों के ज्ञानार्थ यहां लिखता हूं। निदान सर्व जगत् का व्यवहार प्रवर्चा कर भरत पुत्र को विनीता नगरी का राज्य दिया, और बाहुबली को तक्षशिला का राज्य दिया, (उस तक्षशिला का अब पता अंग्रेज सरकार ने पाया है, प्रयाग के सरस्वती पत्र में लिखा देखा था) बाकी सब पुत्रों के नाम से देश वसा २ कर १८ में पुत्रों को दे दिया, भारत के ३ खंड को प्रफुल्लित करा, जैसे (१) अंग पुत्र से अंग देश, (२) बंग पुत्र से वंग देश, (३) मरु पुत्र से मरुदेश, (४) जांगल से जंगल देश इत्यादि सर्व जान लेणा! पीछे श्री ऋषभदेव ने स्वयमेव दीक्षा ली, उनों के संग कच्छ, महाकच्छादि चार हजार सामंतों ने दीक्षा ली। ऋषभदेवजी पूर्ववद्ध अंतराय कर्म के वश, एक वर्ष पर्यंत आहारपानी की भिक्षा नहीं पाई, तव ४ हजार पुरुप भूख मरते जटाधारी कंद, मूल, फल, फूल, पत्रादि आहार करते गंगा के दोनों किनारे ऊपर वल्कल चीर पहन कर, तापस बन कर रहने लगे और ऋषभदेवजी के एक हजार आठ नामों की श्रृंखला रच कर जप, पाठ, ध्यान आदि सुकृत्य करने लगे
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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