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________________ अथवा स्त्री शस्त्रादि राग द्वेषादि चिन्ह का असंगादि तदाकारता रूप अंश यह निनकी स्थापना में है । नैगम नय अंश को ग्रहण कर वस्तु सिदि कहता है इस लिये पूर्वोक्त अंश रूप थापना में नैगम नय सिद्ध है। (२) अरिहंत तथा सिद्ध के सर्व गुण के संग्रह की बुद्धि को धारण कर के प्रतिमा की थापना करी है इसलिये यह संग्रह नय अरिहंत सिद्ध की थापना में विद्यमान है। . (३) अरिहंत के आकार को बंदन नमन स्तवनादि सर्व व्यवहार श्री अरिहंत का होता है उसका कारणपणा इस थापना में है इसलिये व्यवहार नय थापना में है। () इस जिन प्रतिमा रूम थापना को देख सर्व भव्य जीवों के बुद्धि का विकल्प उत्पन्न होता है कि ये श्री अरिहंतजी है इस विकल्प से थापना करी है इसलिये ऋजु सूत्र नय स्थापना में है। ' (५) अरिहंत सिद्ध ऐसा शब्द इदंप्रकृतिप्रत्ययसिद्धम् ( यह स्वभाव प्रत्यय सिद्धपणा) इस स्थापना में प्रवर्तता है इसलिये शब्द नय थापना में है। '- (६) अरिहंत का पर्यायवाचक वीतराग सर्वज्ञ तीर्थकर तारक जिन पारंगत त्रिकालवित् इत्यादि सर्व पर्याय की प्रवृत्ति भी थापना में है इसलिये सममिरूद नय थापना में है। , लेकिन केवल ज्ञान, केवल दर्शनादि गुण तथा उपदेश देना यह धर्म थापना में नहीं है, इसलिये एवं भूत नय का धर्म थापना में नहीं इसलिये थापना निष्पनता अरिहंत सिद्ध रूप ६ नय से है। . , इसलिये कार्यपण से अरिहंत विधमान में ६ नय है विशेष आवश्यक में आदि के तीन नय थापना में कहा है । यहां उपचार भावना से ६ नय कहा, समभिरूट नय वचन पर्यायवती है वह लक्षण थापना में प्राप्त होता है इसलिये । ६ नय कहा है। जिन प्रतिमा रूप थापना समाकिती देशविरति और सर्वविरति को मोक्ष ! साधन का निमित्त कारण है वह निमित्त कारण ७ नय से है, कारण का धर्म
SR No.010046
Book TitleJain Digvijay Pataka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages89
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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