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________________ ( ६५ ) (५.) अगुरुलघुत्वगुण - जिस से द्रव्य अपने स्वभाव को कभी हीन व अधिक नही करता है, जितने गुण हैं उनको अपने में बनाये रखता है व जिसके कारण एक गुण या पर्याय दूसरे गुण या पर्याय रूप नही हो सकता । (६) प्रमेयत्वगुण - जिससे द्रव्य किसी के द्वारा जाना जा सके । २५. जीव द्रव्य के विशेष गुण जीव द्रव्य के विशेष गुण चेतना अर्थात् ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य्य, चारित्र या वीतरागना, सम्यक्त्व या सच्चा श्रद्धान आदि है । हरएक जीव स्वभाव से सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अनन्तसुखी, अनन्तबली, परमशान्त, परमश्रद्धावान है। * ये गुण सिवाय जीवों के और पांच द्रव्यों में से किसी मे नही पाये जाते हैं । संसारी जीवों में कर्मों के बन्धन होने के कारण ये विशेष गुण पूर्ण प्रकट नही होते । २६. जीव की तीन प्रकार अवस्था इस जगतमें जीवों की निम्न तीन अवस्थाएँ होती है :-- * सुद्ध सचेयण बुद्ध जिय, केवलगाय सहाउ । सो अप्पा दिए मुहु, जइ चाहउ सिवलाहु ||३६|| ( योगसार ) भावार्थ - श्रात्मा शुद्ध चेतनामय, बुद्ध, वीतरागी, केवलज्ञान स्वभाव है। जो मोक्ष चाहते हो तो रात दिन इसी का मनन करो ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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