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________________ ( ३० ) मुक्तावस्था में प्रात्मा निरन्तर परम आनन्द में मन्ना रहती हैं। उनके कोई चिन्ता, रांगादिभाव नहीं होते हैं। एक योगी जेसे संसार के प्रपञ्च से हटा हुआ एकांत में स्वरूप की समाधि में गुप्त रह कर स्वात्मानन्द का लाभ करता है उसी तरह वे निरन्तर स्वात्मा में लीन रहते हुए अत्मिानन्द का लाभ करते हैं। ' वे परम पवित्र, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तथा परम निराकुल हैं। वे किसी को न बनाते न विगाडने, न किसी को सुखी व दुखी करते हैं। कहा है अट्टविय कम्म वियला सीदीभूदा णिरंजणा णिची । अट्ठ गुण किदकिच्चा लोयग्गणिवासिणो सिद्धा ॥ (गोम्मटसार जीवकांड) भावार्थ:-सिद्ध आत्माएं आठ कर्म रहित, परमशीतल, निर्मल, अविनाशी, पाठ गुण सहित, कृतकृत्य तथा लोक के अगूभाग में रहने वाले होते हैं। १२. मोक्ष का मार्ग रत्नत्रय है ऊपर कहे हुए मोक्ष के पानेका उपाय सम्यग्दर्शन (सच्चा विश्वास ), सम्यग्ज्ञान ( सच्चाज्ञान ) और सम्यक चारित्र ( सच्चा श्राचरण ) इन तीनों की एकता उगता है वैसे कर्म बन्ध के कारणों के मिट जाने पर सिद्ध जीव के फिर संसार नहीं होता है। शरीर के छूट जाने पर उनका आकार बना रहता है, वह छोड़े हुये शरीर के प्रमाण होता है।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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