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________________ Drink wamils. "मेरी समझमे यह पुस्तक विशेष उपयोगी है । जैनधर्म के.सिद्धान्तको वर्तमान पद्धतिले समझाने में लेखक महोदय ने कसर नहीं रक्खी। उनकी, जैनधर्म का प्रसार और सच्चे मार्ग पर लोगोंके थानेकी पवित्र भावना, पुस्तकमें पद २ पर प्रतीत होतीहै । ऐसी पुस्तकोंके प्रचारसे खांला जैनधर्मका ठोसप्रचार होगा। मैं इस पुस्तक का हृदय से अभ्युदय चाहता हूँ।" आश्विन कृष्णा १५ ) माणिकचन्द जैन, सम्वत् १६२ मोरेना (ग्वालियर) इसका बहुतसा भाग राय बहादुर जगमन्दर लाल जैनी एम० ए० लॉ मेम्बर इन्दौर व कुछ भाग विद्यावारिधि चम्पत. राय जी ने भी सुना है और पसन्द किया है । उन्होंने जो त्रुटियाँ बताई, उनको ठीक कर दिया गया है । पं० जुगलकिशोर जी को पुस्तक भेजी गई थी, परन्तु आपको रचना पसन्द न आई, इससे आपने विना शुद्ध किये वापिस करदी तथा न्यायाचार्य पण्डित गणेशप्रसाद जी ने समयाभाव से देखना स्वीकार न किया है। हमने अपने हार्दिक भाव से पुस्तक का सङ्कलन जैन सिद्धान्तानुसार किया है। इस दुसरे संस्करणमें यथावश्यक सुधार कर दिया गया है। तब भी जहाँ कहीं भूल हो, विद्वज्जन क्षमाभाव धारण करके सूचित करें, जिस से तीसरे संस्करण में शुद्धि होजावे। अमरावती जैन समाज का सेवकफागुन सुदी ६ वीर सम्वत् २४५५ ब्र शीतलप्रसाद "
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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