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________________ यद्यपि किसी कालमें कुछ समय के लिए लुभ हो जात है, तो भी फिर नीर्थंकरों या मोक्षगामी केवलज्ञानी महान आत्माओके द्वारा प्रकाश किया जाता है। अब यह धर्म आत्म. के शुद्ध करने का उपाय है तब जैसे आत्मा और अनात्म. अर्थात् चेतन और जड से भरा हुआ यह जगत अनादि अनंत. है, वैसे ही आत्मा की शुद्धि का उपाय यह धर्म भी अनादि अनंत है। जगत में धान्य और धान्य की तुष रहित शुद्ध श्रव. स्था चावल तथा धान्य का शुद्ध होने का उपाय तीनो है. अनादि हैं। इसी तरह लसारो आत्मा परमात्मा और पग्मा न्मपदकी प्राप्ति की उपायें भी अनादि हैं। ४. ऐतिहासिक दृष्टि से जैन धर्म की प्राचीनता जैसा पहिले बताया गया है, यह जैनधर्म अनादि कार से चला आ रहा है। हम यदि वर्तमान खोजे हुए इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो पता चलेगा कि जहां तक भारतकी ऐतिहा सिक सामग्री मिलती है वहाँ तक जैनधर्म पाया जाता है। इस वात के प्रमाण इस पुस्तक में नमूने के रूप में निम्न लिखित एक दो ही दिये जाते है, जिससे पुस्तक बहुत बड़ी न हो जावे : मेजर जेनरल फाग साहब (Major General J G. R. Furlong ) अपनी पुस्तक "In his short studies of Comparative religions P. P. 243-4" कहते हैं :
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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