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________________ * जैनधर्म प्रकाश* दोहा ऋषभ श्रादि महावीरलों चौबीसो जिनराय । विघ्नहरण मंगल करण वंदो मन वच काय ॥१॥ १. जैनधर्म का उद्देश्य । जैनधर्म का उद्देश्य अर्थात् प्रयोजन - ससारी आत्मा के पाप पुण्य रूपी कर्म मैल को धोकर उस को संसार के जन्म मरणादि दुःखों से मुक्त कर स्वाधीन परमानन्द में पहुँचा देना है. जिस से यह अशुद्ध प्रात्मा शुद्ध होकर परमात्म पद में सदाकारम के लिए स्थिर हो जावं, यह मुख्य उद्देश्य है और गौण उद्देश्य क्षमा, ब्रह्मचर्य, परोपकार, अहिंसा आदि गुणों के द्वारा सुख प्राप्त करना है। देशयामि समीचीनम् धर्म कर्म निवर्हणम् । संसार दुःखतः सत्त्वान्यो धरत्युत्तमे सुखे ॥ (र०क०श्रा०) भावार्थ-जा ससार के दुःखों से जीवों को छुड़ाकर उत्तम सुख में धरे ऐसे क्रर्म-नाशक समीचीन धर्म का उपदेश करता हूँ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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