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________________ ( २४२ ) जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत क्षेत्र में तथा विदेह क्षेत्र में कर्मभूमि है। शेष चार क्षेत्रों में भोगभूमि है - इन तीनों कर्मभूमि के क्षेत्रों में श्रार्य-खण्ड और म्लेच्छ खराड हैं। जिस क्षेत्र के रहने वाले किसी धर्म पर विश्वास रखते हैं उसे श्रार्य-खराड कहते हैं व जिस क्षेत्र के रहने वाले धर्म का बिलकुल भी विचार नहीं करते हैं-परलोक, पुण्य पाप व परमात्मा आत्मा आदि को कुछ मी नहीं सम झते हैं— केवल शरीरमें जो इद्रियें हैं उनकी इच्छानुसार भोग विलास करने में व भोगों के लिये सामग्री एकत्र करने में लीन रहते हैं, वह क्षेत्र म्लेच्छ खराड कहलाता है । भरत व पेरावत हर एक में एक एक श्रार्य खण्ड व पाँच २ म्लेच्छ खण्ड हैं। विदेह में ३२ श्रार्य खराड व १६० म्लेच्छ खण्ड हैं । ज्योतिषी देव सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र व सारे ऐसे पाँच तरह के होते हैं--ये सब मध्यलोक में ऊपर की तरफ़ हैं-- ज्योतिषी देवोका शरीर सात धनुष ऊँचा होता है व आयु उत्कृष्ट १ पल्प व जघन्य-पल्यका आठवां भाग है। इनके विमान सदा बने रहते है। उनमें देव पैदा होते हैं व मरते हैं। इनके विमानोंमें, तथा भवनवासी, व्यंतर तथा ऊर्ध्वलोक में रहने वाले कल्पवासी देवों के विमानों में जिन मन्दिर हैं । ऊर्ध्व लोक का वर्णन मेरु के तले तक नीचे से ७ राजू ऊंचा है, फिर मेरु के तले से ऊपर तक सात राजू ऊंचा है। मेरु तल से डेढ़ राजू तक सौधर्म ईशान स्वर्गों के विमान हैं। उसके ऊपर १|| राजू
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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