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________________ ( २२६) वह धन स्वयं न लिया, कृपक ने भी ग्रहण न किया। वादानु. वाद के पीछे धन्यकुमार धन वहीं छोड़ कर चले गए। (२८) गृहकी स्त्रियों में भी नीतिसे वर्तनका प्रचार था। धन्यकुमार चरित्र ०४ अकृतपुण्य की माता वलभद्र के पुत्रों को खीर बनाकर खिलाती थी, परंतु अपने पुत्र को बिना अपने स्वामी बलभद्र की आशा के ज़रा सी भी खीर नहीं देती थी। (२६) वैश्यों में इतनी चतुरता थी कि थोड़ी पूंजी से अधिक धन कमा सकते थे। धन्यकुमार चरित्र अ०६ राजगृह के श्रीकीर्ति सेठ ने यह प्रसिद्ध किया कि जो वैश्य ३ दमड़ी से १००० दीनार कमावेगा, उसे अपनी कन्या विवाहूगा। धन्यकुमार ने फूल की माला बनाकर श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार को १००० दीनार में बेच दी। (३०) गरीय पिता व भाइयोका भी सम्मान करते थे। धन्यकुमार चरित्र अ०६ धन्यकुमार सेठ जब श्रेणिक से सम्मानित हो राजा होगए, तब उनके पिता व सातो भाई उज्जैनो से निर्धन स्थिति में पाए । सबका धन्यकुमारने बहुत सम्मान किया व धनादि दिया। इन ही भाईयो ने द्वेष कर धन्यकुमार को वापी में पटक दिया था, परन्तु धन्यकुमारने उस बातको भुला दिया। (३१) पक्षियों द्वारा सन्देश भेजा जाता था। क्षत्र चूडामणि लम्ब ३ श्लोक १३८-४३ जीवन्धर ने एक तोते के द्वारा गुणमाला को पत्र भेजा था।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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