SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २११ ) ३. स्त्री को भी मुक्ति पद होना । दृष्टान्त में १६ तीर्थदूर मल्लिनाथ को मल्लि तीर्थकरी लिखना। प्राचीन जैन आम्नाय में स्त्री उस ध्यान की योग्यता नही रख सकती,जिस से केवलज्ञान होसके। इसलिये स्त्री का जीव भागे पुरुप भव पाकर ही महाबत पाल मोक्ष जा सकता है। ४. केवलीभगवान श्ररहंत को भी ग्रास रूप साधारण मनुष्यों के समान भोजन पान करना, मलमूत्र करना, रोगी होना । प्राचीन जैनमत में केवली परमात्मा के अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख, अनन्त बल प्रगट होजाने से उनकी आत्मा में न इच्छाएँ होती हैं और न निर्वलताएँ। उनका सशरीर अवस्था में शरीर कपूरवत् बहुत ही निर्मल होजाता है। उसमें धातु उपधातु बदल जाती है । तब जैसे वृक्षों का शरीर चहुँ ओर के परमाणुनोंसे पुष्टि पाता है, उसी तरह केवलीका शरीर दीर्घ काल रहने पर भी चारों तरफ के शरीर योग्य परमाणुओं के ग्रहण से पुष्टि पाता है। केवली के शरीर में न रोगादि होते और न मलमूत्र होता है। ५ मूर्तियों को लंगोट सहित ध्यानाकार बनाकर भी उनके गृहस्थके समान मुकुट आदि आभूषण पहिनाते, शृंगार करते, अतर लगाते, पान खिलाते हैं । दिगम्बर जैन मूर्तियाँ नग्न ध्यानाकार खड़े व बैठे प्रासन होती है । उनमें कोई वस्त्र का चिन्ह नहीं होता न वे अलंकृत की जाती हैं। ६. काल द्रव्यको कोई २ श्वेताम्बर ग्रन्थकार निश्चय से स्वीकार नहीं करते। केवल घड़ी घण्टा आदि व्यवहार काल मानते हैं। दिगम्बर जैन काल द्रव्य को द्रव्यों के परिवर्तन
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy