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________________ (१९१ ) (७) १८ वें तीर्थङ्कर श्री अरहनाथ जी-राज्या वस्था में एक दिन शरदऋतु में मेघों का आकार नष्ट होना देख आप वैरागी हो गये । १६ वर्ष तप कर अरहन्त होकर उपदेश दे अन्त में मोक्ष पधारे । (८)सभौम-श्री अर नाथ तीर्थङ्कर के मोक्ष के वाढ हुए । अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी राजा सहस्रबाहु और रानी चित्रमती के पुत्र थे। आपका जन्म एक बनमें हुआ था। इनके पिता सहस्रबाहु के समय में इनके बड़े भाई कृतवीर्य ने एक दफ़े किसी कारण से राजा जमदग्नि को मार डाला, तब जमदग्नि के पुत्र परशराम और श्वेतराम ने यह बात जान कर बहुत क्रोध किया और सहस्रवाहु तथा कृतवीर्य को मार डाला । तब सहस्रवाहु के बड़े भाई सांडिल्य ने गर्भवती रानी चित्रमती को वनमें रक्खा जहां सुभौम पैदा हुए। __यह १६ वें वर्ष में चक्रवर्ती हुए। एक दिन परशुराम को निमित्तानी से मालूम हुआ कि मेरा मरण जिससे होगा वह पैदा हो गया है। निमित्तज्ञानी ने उसकी परीक्षा भी बताई कि जिस के आगे मारे हुए राजाओं के दांत भोजन के लिये रखे जायें और वे सुगन्धित चावल हो जाने, वही शत्रु है । इसलिये परशुराम ने अनेक राजाओं को सुभौम के साथ वुलाया। सुभौम के सामने दांत चांवल हो गये । सुभौम को ही शत्रु समझ परशुराम ने सुभौम को पकड़ा, परन्तु तब ही सुभौम को चक्ररत्न की प्राप्ति हुई। उस चक्र से ही युद्ध कर सुभौम ने परशुराम को मार दिया। दिग्विजय कर सुभौम ने बहुत काल राज्य किया। यह बहुत ही विषयलंपटी था । एक दके इसको एक शत्रु देव
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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