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________________ ( १७६ ) यण श्रीकृष्ण थे । यह भी बड़े प्रतापशाली थे । एक दफे मगध के राजा प्रतिनारायण जरासिंधने चढ़ाई की। तब श्री कृष्णने श्री नेमिनाथजी को नगर की रक्षा का भार सौंपा। प्रभु ने ॐ शब्द कहकर स्वीकार किया और मुस्करा दिये, जिस से श्री कृष्ण को विजय का निश्चय हो गया । कृष्ण जरासिंध को मार कर व तीन खण्ड देश के स्वामी हो लौट आये । एक दफ़े बनक्रीड़ा को नेमिनाथजी कृष्णकी सत्यभामा आदि पटरानियों के साथ गये। वहाँ बातों ही बातों में सत्यभामाने नेमिनाथजी को नोचा दिखानेकी इच्छा से यह साबित करना चाहा कि वे कृष्ण के समान पराक्रमी नहीं है । इसको सुनकर स्वामी जी ने अपना वल दिखाने को श्रायुधशाला में श्राकर नाग शय्या पर चढ धनुष चढ़ाया तथा शङ्ख बजाया । शंख को सुनकर श्री कृष्ण श्री नेमिनाथ जी का कार्य जान आश्चर्यान्वित हुए और यह विचारने लगे कि यदि ये इतने पराक्रमी है तो इनके सामने मैं राज्य न कर सकूँगा, इसलिए इनको वैराग्य हो जावे, ऐसा उपाय करना चाहिये । इन्हीं दिनों नेमिनाथ का विवाह उग्रवंशी राजा उग्रसेन की कन्या राजमती से होने वाला था । लग्न निश्चित हुई और बारात सज धज के साथ चलने लगी । इधर श्री कृष्ण ने नेमिनाथ को वैराग्य उत्पन्न कराने के लिये बारात के मार्ग में बहुत से पशुओं को बन्द करा के सेवकों को यह समझा दिया, कि यदि श्री नेमिनाथ जी पूछे तो यह कह देना कि श्री कृष्ण ने आपके विवाहोत्सव में म्लेच्छ-प्रतिथियों के सत्कारार्थ इन्हें इकट्ठा कराया है। यह केवलमात्र एक चाल थी। पशु मारकर मांस खाने
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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