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________________ सन् १९२१ का हिसाब निम्न प्रकार है, जिससे प्रगट होगा कि सन् १९२१ में जैनीश लाख में एक ही कैदी हुआ है । यह जैन गृहस्थों पर जैनचारित्र की छाप का प्रभाव है : धर्म कुल आबादी जेलकेकैदी| कितने पीछे एक हिन्दू मुसलमान २१०३७८०८ | १९३४४६१५७७३/ ७१८२ २७६७६५ । ३४६ ४:१३४२ ४ १८५४ में से एक ६४२ में से एक ७६४ में से एक १२०३३३ में से एक ईसाई जैन जैनियों के पांच व्रतो २५ दोष न लगने चाहियें। इस उपदेश को जो मानेगा उसको सरकारी पेनलकोड कानून की कोई भी फ़ौजदारी दफा नहीं लग सकती। यह कितना सुंदर उपदेश गृहस्थोंके लिये है। वे २५ दोष नीचे लिखे प्रमाण हैं: अहिंसावत के पांच-अन्यायसे पीटना, बंदीमें डालना, अङ्ग वेदना, अधिक बोझा लादना, अन्न पान रोक देना। सत्यव्रत के पाँच-मिथ्या उपदेश देना, किसी गृहस्थ का गुप्त रहस्य कहना, झूठा लेख लिखना, अमानतको झूठ कह कर लेना, गुप्त सम्मतियों को इशारोसे जानकर प्रकट करना। . अचौर्यव्रत के पाँच-चोरीका उपाय बताना, चोरी का माल लेना, राज्यविरुद्ध महसूल चुराना या नीति विरुद्ध लेनदेन करना, कमती बढ़ती तौलना-नापना. झूठी वस्तु को बरी कहकर वेचना या खरीमें झूठी मिलाकर खरी कहना ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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