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________________ (१५६) वुलावे तो जीम आना, अपने हाथ से पानी स्वयं न लेना। जो कोई दे उससे अपना व्यवहार बड़े सन्तोष से करना । (8) परिग्रहत्याग प्रतिमा___ धनधान्यादि परिग्रहदान के लिये देकर शेष पुत्र पौत्रो को दे देना, अपने लिये कुछ आवश्यक वस्त्र व भोजन रख लेना और धर्मशाला आदि में ठहरना, भक्ति से बुलाये जाने पर जो मिले सन्तोष से जीम लेना। (१०) अनुमति त्याग प्रतिमा सांसारिक कार्यों में सम्मति देने का त्याग न था सो इस दर्जेमें बिलकुल त्याग देना। भोजन के समय बुलाये जाने पर जीम लेना। (११) उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा अपने निमित्त किये हुए भोजन का त्याग यहां होता है । जो भोजन गृहस्थ ने अपने कुटुम्ब के लिए किया हो उसी में से भिक्षा द्वारा भक्ति से दिये जाने पर लेना उचित है। इसके निम्न दो भेद हैं: १ क्षुल्लक--एक खण्ड चादर व एक कोपीन या लंगोट रखते हैं व मोर पंख की पीछो व कमण्डल रखते हैं। बालों को कतराते हैं। गृहस्थी के यहां एक दिन में एक दफ़े से अधिक नहीं जीमते । भोजन थाली में रख कर बैठे हुए करते हैं। ___२. ऐलक-जो केवल एक लंगोटी ही रखते हैं। मुनि की क्रियाओं का प्रयास करते हैं। गृहस्थी के यहां बैठकर
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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